नयी दिल्ली। देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा ओला और उबर कंपनियों पर दिया गया बयान वास्तविकता के करीब ही नज़र आ रहा है, दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में दो और तीन कारें रखने वाले घरों में अब कारें कम होती जा रही है। टोनी सेबा, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं। दुनिया भर में लेक्चर देते हैं। उन्होंने एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है Clean Disruption of Energy and Transportation। वो अपने लेक्चर की शुरुआत आमतौर पर एक चित्र दिखा के करते हैं।


टोनी कहते हैं, सन् 1900 में न्यूयॉर्क शहर के 5th एवेन्यू सड़क पर केवल घोड़ागाड़ी नज़र आ रही हैं। उसी सड़क पर सन् 1913 में केवल कारें ही कारें हैं। यानी की केवल 13 वर्षों में कार ने घोड़ागाड़ी को बाजार से बाहर कर दिया। तकनीक के आगे घोड़ागाड़ी हार गई। दूसरा उदहारण देते हुए टोनी कहते हैं कि सन् 2000 कोडेक के इतिहास का सबसे सफलतम वर्ष था। इस वर्ष कंपनी ने रिकॉर्ड 1।4 बिलियन डॉलर का प्रॉफिट कमाया। उसके महज 4 वर्ष बाद यानि सन् 2004 में कोडेक दीवालिया हो गयी। दरअसल, डिजिटल फोटोग्राफी की तकनीक ने कोडेक का मार्केट ही ख़त्म कर दिया। इसे ही व्यापार और वाणिज्य की भाषा में विघटन (Disruption) कहा जाता है। 20 वीं सदी में जब भी कोई नया आविष्कार होता और नया उत्पाद मार्केट में आता था तो उसे पकड़ बनाने में 10-20 सालों का समय लगता था। लेकिन आज 21वीं सदी के दौर में यही काम दो चार वर्षों में हो जाता है।


यही ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के साथ भी हुआ, 1950 से 1965 तक कलर टीवी का बाजार महज 2 % था। 1965 से 1980 के बीच ये 80 % हो गया और 1984 आते आते ब्लैक एंड व्हाइट टीवी बाज़ार से पूरी तरह बाहर हो गया। 1965 कलर टीवी के लिए Tipping Point (वह समय जिस पर परिवर्तन या प्रभाव को रोका नहीं जा सकता है) था। तकनीकी मैं परिवर्तन के कारण कई बड़े-बड़े उद्योग घराने को हमने धीरे-धीरे समाप्त होते देखा है। इसका ताजा उदाहरण जिओ भी है, जिसके कारण अन्य सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों का बाजार घटा है। 


भविष्य के बारे में अनुमान लगाते हुए टोनी सेबा कहते हैं कि सन् 2020 में ऐसा ही एक और Tipping point आ रहा है। जब विद्युत वाहन, ड्राइवर विहीन वाहन और उबर जैसे सॉफ्टवेयर, ये तीनों मिल के अगले 5 वर्षों में ऑटोमोबाइल जगत की तस्वीर बदल देंगे। जो बड़ी-बड़ी कंपनियां वक़्त के साथ कदमताल नहीं करेगी उनका खत्म होना निश्चित है, वर्तमान परिस्थितियां बता रही है कि इसका आगाज़ हो चुका है, जैसा विलयन मोबाइल कंपनियां आपस में कर रही है, वैसा ही कुछ ऑटोमोबाइल कंपनियों के साथ भी होगा। 


टोनी ने अनुमान जताया है की 2030 तक मार्केट पर ड्राइवर विहीन विद्युत कार का कब्जा हो जाएगा और उस वक़्त की सरकारें आज की हस्त चालित ड्राइवर कार को बैन कर देंगी क्योंकि ये तब सुरक्षा की दृष्टि से और ज्यादा घातक हो जाएंगी। इसके अलावा 2030 तक कार की स्वयं स्वामित्व समाप्त हो जाएगी और सड़क पर कार केवल टेस्ला, गूगल, उबर जैसी कंपनियों की ही चलेंगी और मांग मुताबिक उपलब्ध होंगी। बिजली से चलने वाली कारों कि वजह से पेट्रोल डीज़ल की खपत 30 % तक कम हो जाएगी और सभी तेल उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी और वो दिवालिया भी हो सकते है।


EV यानी कि बिजली से चलने वाली कार तेल से चलने वाली कार से 100 गुनी सस्ती होगी और उसकी लाइफ भी आज की कार से 100 गुणा अधिक होगी। आने वाले वक़्त में, यानी आज से सिर्फ 5 या 10 वर्ष बाद कार चलाना इतना सस्ता हो जाएगा कि कार में केवल टायर का ही खर्च रहेगा, बाकी सारा खर्च तकरीबन सिफर ही होगा। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है और सिंगापुर में ड्राइवर रहित कारें चलने भी लगी हैं।


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