आहना कुमरा ने टेलिविजन के शो 'युद्ध' से अपनी ऐक्टिंग करियर की शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें पहचान दिलाई फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' ने। आहना ने अपनी पिछली फिल्म 'द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में प्रियंका गांधी के किरदार में नजर आई थीं। कई बड़े नामों के साथ काम करने के बावजूद आहना मानती हैं कि एक आउटसाइडर के लिए बॉलिवुड में जमीन तलाशना मुश्किल है और यह जंग लंबी चलती रहती है। आहना से उनकी निजी जिंदगी और करियर को लेकर हुए बातचीत के अंश... 

आपने टेलिविजन से अपनी शुरुआत की थी। आज के दौर में दर्शक खासकर यूथ कंप्लेन करते हैं कि टेलिविजन में अब उनके लिए कुछ नहीं रहा? यही वजह है वे अब टेलिविजन से डिजिटल प्लैटफॉर्म पर शिफ्ट हो गए हैं। क्या कहना चाहेंगी? 

यह बात शत-प्रतिशत सच है। मुझे याद मैं पिछले दिनों अपने नाटक के सिलसिले में बड़ोदरा गई हुई थी। मैंने बहुत पहले 'ऑफिशल चुकियागिरी' नाम का एक वेब शो किया था। बहुत ही छोटे प्लैटफॉर्म पर आया था। बड़ोदरा के मॉल में घूमते दौरान एक बच्चा मेरे पास आया और मुझे मेरे कैरक्टर के नाम से बुलाने लगा। मैंने हैरानी से पूछा कि आपको कैसे पता? तो उस बच्चे ने जवाब दिया कि मैंने आपको इंटरनेट पर देखा था। फिर मुझे एहसास हुआ कि अब डिजिटल प्लैटफॉर्म बड़ी ही तेजी से छोटे-छोटे शहरों व कस्बों में जा पहुंचा है। एक आर्टिस्ट के तौर पर आपको याद किया जाएगा। इससे आर्टिस्ट को ड्यू मिल रहा है। वहीं यूथ नागिन, मक्खी जैसे शोज से खुद को रिलेट नहीं कर पाते हैं। यहां मैं इन शोज की बुराई नहीं कर रही हूं। अगर इन तरह के शोज की डिमांड नहीं होती, तो ये शोज बनते नहीं। वहीं वेब की ऑडियंस ज्यादातर यूथ ही हैं क्योंकि वे वहां पर मिलने वाली कॉन्टेंट से खुद को रिलेट कर पाते हैं। 

आपकी पिछली फिल्म 'द ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' नहीं चल पाई। फैल्यॉर को कैसे हैंडल करती हैं? 

मैंने एक शो में एक लाइन बोली थी। यह लाइन मेरी लाइफ से जुड़ ही गई है, 'डिटैचमेंट इज की'। जैसे जिंदगी में अटैचमेंट जरूरी होता है, ठीक वैसे ही लोगों को डिटैच्ड होना भी सीखना चाहिए। हरेक फिल्म अपनी किस्मत लेकर आती है। मुझे नहीं पता था कि 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' इतना चल जाएगी। फिल्म बनाने से पहले कोई भी नहीं सोचता कि यह चलेगी या नहीं। जब फिल्म नहीं चलती है, तो फिल्म की किस्मत होती है। आप इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं। आप देख लें, हाल ही में एक सुपरस्टार की फिल्म आई और वह फ्लॉप रही। सबने उस फिल्म के लिए जबरदस्त मेहनत की होगी, लेकिन किस्मत कोई बदल नहीं सकता। 

'लिपस्टिक अंडर बुर्का' करियर को दिशा देने में कितनी मददगार साबित हुई है? 

देखिए फिल्म सभी ऐक्ट्रेस के लिए टर्निंग पॉइंट रही है। देखिए, सब हमें जानते हैं। इस फिल्म से आप अपना नाम बना लीजिए लेकिन आगे आपको अपना करियर किस दिशा में लेकर जाना है यह पूरी तरह आप पर ही निर्भर करता है। उसी दौरान इस फिल्म के साथ एक और फीमेल सेंट्रिक फिल्म आई थी, जिसमें दो सुपरस्टार थीं। जिसकी वजह से बाकी दो ऐक्ट्रेस को काफी फायदा हुआ। वह फिल्म ग्लैमरस फिल्म थी और लोगों ने उसे जमकर सपॉर्ट किया था। 

आपको लगता है कि फिल्मों के सिलेक्शन को लेकर कोई गलती रह गई हो?

देखिए, यह फिल्म को लेकर ही नहीं बल्कि हर बिजनस में होता है। कभी आप सही चुनाव करते हैं, तो कभी आपसे गलती हो जाती है। निर्णय लेते वक्त कभी हम दिल की सुनते हैं, तो कभी दिमाग की। यहां हम सक्सेस और फैल्यॉर को प्रेडिक्ट नहीं कर सकते हैं। सब इंट्यूशन पर निर्भर करता है। मैं फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं हूं, यहां मुझे कोई सपॉर्ट नहीं मिला है। इसलिए कई बार चीजें समझ नहीं आती हैं। वहीं आप स्टारकिड्स को देख लें। उनकी ग्रूमिंग तो बचपन से ही होती रही है। उन्हें इतना सिखाया और बताया जाता है। तो वो हर कदम फूंक-फूंक कर रखते हैं। हमारा क्या है, हमें जो प्रॉजेक्ट्स मिले, उसी में से सिलेक्ट कर लिया। फोकस तो यही होता है कि, जो काम मिला है उसे ढंग से करूं ताकि आगे आपको और काम मिलते रहें। आउटसाइडर्स को तो, उनके पिछले काम से ही उन्हें आगे का काम नसीब होता है। हमारा प्रोसेस ही अलग है। हमारे साथ ऐसा नहीं है कि हमारी डेट अगले 5 साल तक फुल है। हमारी डेट्स तबतक फुल है, जबतक हमारा पिछला काम ठीक है। मैंने हमेशा सोचती हूं कि यह लोग कितने आराम से अच्छे-अच्छे रोल्स आखिर कैसे कर लेते हैं। फिर देखती हूं कि इनके पास इतनी सारी टीम हैं, इनकी छोटी-छोटी समस्याएं, तो टीम सुलझाती हैं। हमारी तो हर चीज में हमें ही घुसना पड़ता है। हम इतने प्रिवलेज्ड नहीं हैं। हमें उन तक ही पहुंचने में ही आधी जिंदगी निकल जाती है। 

आप मानती हैं कि इंडस्ट्री आपको लेकर उदार हुई है? 

अरे, वह तो हमें जानते ही नहीं, फिर उदार कैसे होंगे? यहां नाम बनाने में ही इतना समय लग जाता है। देखिए बॉलिवुड इंडस्ट्री बहुत वेलकमिंग नहीं है। यहां बहुत प्रतिस्पर्धा है। एक ऐक्टर के तौर पर रोज आपको कुछ न कुछ सुनाया जाता है। आप अच्छे नहीं है, आपको ये नहीं आता वो नहीं आता। ऐक्टर के सेल्फ रिस्पेक्ट और डिग्निटी पर बार-बार वार किया जाता है। आपको ऐक्टर बनने के लिए मोटी चमड़ी चाहिए। 


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