कंगना रनौत की फिल्म क्वीन से विकास बहल जबरदस्त सुर्खियां बटोरने में कामयाब रहे थे। देश के पुरुष प्रधान समाज के दबदबे के बीच प्रोग्रेसिव, फेमिनिस्ट और एंटरटेनिंग फिल्म बनाकर विकास ने मेनस्ट्रीम फिल्म लोगों को दी थी। इस फिल्म ने ना केवल उन्हें इंडस्ट्री में नाम दिया बल्कि कंगना को भी स्थापित करने में इस फिल्म ने अहम भूमिका निभाई है।  


आपको बतादें कि मीटू केस में नाम सामने आने के बाद और इसके चलते फैंटम कंपनी के बंद होने के साथ ही विकास पर काफी दबाव भी जाहिर तौर पर होगा। हालांकि विकास इस फिल्म के साथ क्वीन का जादू दोहराने में नाकाम रहते हैं।


सुपर 30 की शुरुआत होती है फ्लैशबैक के साथ। एक बेहतरीन स्टूडेंट आनंद का एडमिशन क्रैबिंज यूनिवर्सिटी में होता है लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते उसका एडमिशन नहीं हो पाता है। आनंद के पिता की मौत हो जाती है और उसे अपनी मां के हाथों के बने पापड़ बेचकर घर चलाना पड़ता है।


हालांकि आनंद की किस्मत बदलती है जब उन्हें लल्लन सिंह का साथ मिलता है। लल्लन सिंह का किरदार आदित्य श्रीवास्तव ने निभाया है। लल्लन आईआईटी की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए एक कोचिंग सेंटर चलाता है और आनंद को बतौर टीचर शामिल कर लेता है।  हालांकि जब आनंद को एहसास होता है कि उसके जैसे कई बच्चे अपने सपनों को आर्थिक तंगी के चलते बलिदान कर रहे हैं तो वो अपनी कंफर्टेबल जिंदगी को छोड़कर फ्री कोचिंग सेंटर खोलता है।


ऋतिक रोशन ने आनंद कुमार जैसे लगने की पूरी कोशिश की है लेकिन अपने ब्राउन मेकअप शेड्स में वे कई सीन्स में प्रभावी नहीं लगते हैं। जहां उनकी स्किन का काफी ध्यान रखा गया वही एक्टर की आंखों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। फिल्म में ऋतिक की नैचुरल हरी आंखें एहसास नहीं होने देती कि वे ऋतिक नहीं बल्कि आनंद कुमार हैं।


ऋतिक का बिहारी एक्सेंट हालांकि सुनने में दिलचस्प है और वे इस रोल को निभा पाने में सफल रहते हैं। पंकज त्रिपाठी फिल्म में एजुकेशन मिनिस्टर के तौर पर दिखते हैं जिनका कोचिंग बिजनेस शानदार चल रहा है वहीं मृणाल के पास थोड़े से स्क्रीन स्पेस में खास कुछ करने को नहीं था लेकिन ऋतिक के साथ सीन्स में वे प्रभावी लगती हैं। अनुराग कश्यप की कई फिल्मों में नजर आ चुके आदित्य श्रीवास्तव अपनी अदाकारी से एक बार फिर चौंकाते हैं।


हालांकि 2 घंटे 42 मिनट की ये फिल्म थोड़ी लंबी लगती है। फिल्म में ऋतिक की मृणाल के साथ लव स्टोरी वाला हिस्सा इस कहानी में कोई प्रासंगिकता नहीं रखता है। सुपर 30 के कुछ हिस्से ज्यादा ही नाटकीय लगते हैं। मसलन एक बच्चा जो आनंद के सुपर 30 का हिस्सा होने से एक नंबर से रह जाता है, वो ना केवल कुछ घंटों की मेहनत के बाद शानदार म्यूजिकल परफॉर्मेंस देता है बल्कि कई महीनों की ट्रेनिंग का हिस्सा ना बनने के बाद भी आईआईटी का एग्जाम निकाल देता है।



आनंद कुमार के नेतृत्व में सुपर 30 ने देश भर में कमाल किया है। हालांकि विकास बहल के नेतृत्व में ये फिल्म अपना कमाल दिखा पाने में कहीं ना कहीं चूक जाती है।


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