जॉन अब्राहम और निखिल अडवानी की एक खास जज़्बे को दिखाने वाली फिल्म की रिलीज़ का आज सबसे बढ़िया दिन था। कामयाबी के हर हथियार से लैस फिल्म की ठीक ठाक एडवांस बुकिंग रही। आज की छुट्टी के बाद वीकेंड की दो छुट्टियां भी बेहतर कलेक्शन का इशारा कर रही हैं।


साहो के क्विट के बाद बाटला हाउस की सबसे बड़ी टक्कर मिशन मंगल से है। जिसने एडवांस बुकिंग के आंकड़े दिखा कर टॉप वन होने के संकेत दे दिए हैं। हिंदी जर्नलिस्ट के मुताबिक़ कुल मिला कर थीम, टीम, एक्शन, स्टोरी और आईटम सांग तक हर मसाला बड़े ही सधे अंदाज़ में फिल्म में इस तरह डाला गया है की उसे कामयाब बनाया जा सके।


कहानी : फिल्म की शुरुवात उस दृश्य से होती है जब 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में हुए सीरियल बम धमाकों की जांच का समय है। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के अफसर संजीव कुमार यादव (जॉन अब्राहम) और के के (रवि किशन) अपनी टीम के साथ बाटला हाउस एल-18 नंबर की इमारत की तीसरी मंजिल पर पहुंचते हैं। पुलिस की टक्कर यहाँ पर इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकियों से होती है। इस मुठभेड़ में दो संदिग्धों की मौत हो जाती है और एक पुलिस अफसर के घायल होने के साथ-साथ के के की मौत। एक संदिग्ध मौके से भाग निकलता है। इस एनकाउंटर के बाद देश भर में राजनीति की रोटियां सिकने लगती हैं।


राजनीतिक पार्टियों और मानवाधिकार संगठन द्वारा संजीव कुमार यादव की टीम पर बेकसूर स्टूडेंट्स को आतंकी बताकर फेक एनकाउंटर करने के गंभीर आरोप लगते हैं। यहाँ संजीव को बाहरी राजनीतिके साथ डिपार्टमेंट की की सियासत भी झेलनी है। वह पोस्ट ट्रॉमैटिक डिसॉर्डर जैसी मानसिक बीमारी का शिकार हो जाता है। उसकी पत्नी नंदिता कुमार (मृणाल ठाकुर) उसका साथ देती है। कई गैलेंट्री अवॉर्ड्स से सम्मानित जांबाज और ईमानदार पुलिस अफसर अपनी व अपनी टीम को बेकसूर साबित कर पाता है? इसे जानने के लिए आपको थियेटर जाना होगा।


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