70 वर्षों से लंबित राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमिबाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने फैसला पढ़ना शुरू कर दिया है। इस भूमि विवाद में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई फैसला पढ़ रहे हैं। पूरा फैसला आने में करीब आधे घंटे का वक्त लगेगा। आखिर में साफ होगा कि पीठ का अंतिम निर्णय क्या है। इससे पहले यह जान लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज जो फैसला दे रही है, वह 2.77 एकड़ जमीन से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट जमीन के इस हिस्से का मालिकाना हक तय करेगा। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज क्या फैसला दे रहे हैं...




1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा करते थे: SC
SC ने कहा कि टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता है। SC मुख्य पार्टी रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मान रही है। सुन्नी पक्ष ने जगह को मस्जिद घोषित करने की मांग की है। 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने के सबूत नहीं है। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वहां लगातार नमाज अदा की जा रही थी। कोर्ट ने कहा कि 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। अंग्रेजों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई थी। फिर भी हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे ही गर्भगृह मानते थे।




खाली जमीन पर नहीं बनी थी मस्जिद: SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ASI की खुदाई से निकले सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला पूरी पारदर्शिता से हुआ है। कोर्ट ने कहा है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल रचना थी। एएसआई ने 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने कहा कि कलाकृतियां जो मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गईं। मुस्लिम पक्ष लगातार कह रहा था कि ASI की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि नीचे संरचना मिलने से भी हिंदुओं के दावे को माना नहीं माना जा सकता।'




अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का विरोध नहीं'
कोर्ट ने कहा है कि ASI नहीं बता पाया कि मस्जिद तोड़कर मंदिर बनी थी। अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। विवादित जगह पर हिंदू पूजा करते रहे थे। गवाहों के क्रॉस एग्जामिनेशन से हिंदू दावा गलत साबित नहीं। हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम जन्म का सही स्थान मनाते हैं। रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण रखे। हिंदू परिक्रमा भी किया करते थे। चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी दावे की पुष्टि होती है। आपको बता दें कि ऐतिहासिक ग्रंथ में स्कंद पुराण का जिक्र किया गया था।




'मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं'
शिया बनाम सुन्नी केस में एक मत से फैसला आया है। शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज कर दी गई है। उन्होंने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता। 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति रखी गई। एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने। नमाज पढ़ने की जगह को हम मस्जिद मानने से मना नहीं कर सकते। जज ने कहा कि जगह सरकारी जमीन है।हिंदू पक्ष निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज हो गई है। हाई कोर्ट ने इस पक्ष को एक तिहाई हिस्सा दिया था। रामलला को कोर्ट ने मुख्य पक्षकार माना है। निर्मोही अखाड़ा सेवादार भी नहीं है। SC ने रामलला को कानूनी मान्यता दे दी है।

మరింత సమాచారం తెలుసుకోండి: