नयी दिल्ली। अयोध्या मामले में अब तक का सबसे बड़ा फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाया जाए साथ ही केंद्र सरकार तीन महीने में इसकी योजना बनाए। वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन देने का भी फैसला दिया। सीजेआई ने कहा कि ये पांच एकड़ जमीन या तो अधिग्रहित जमीन से दी जाए या फिर अयोध्या में कहीं भी दी जाए।


इससे पहले सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि इतिहास जरूरी लेकिन कानून सबसे ऊपर होता है। सीजेआई ने कहा कि मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई थी लेकिन 1949 में आधी रात में राम की प्रतिमा रखी गई थी।मस्जिद कब बनाई गई इसका वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है। सीजेआई ने कहा कि हम सबके लिए पुरातत्व, धर्म और इतिहास जरूरी है लेकिन कानून सबसे ऊपर है। सभी धर्मों को समान नजर से देखना हमारा कर्तव्य है। देश के हर नागरिक के लिए सरकार का नजरिया भी यही होना चाहिए।


राम जन्म भूमि न्यायिक व्यक्ति नहीं है : सीजेआई

फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि राम जन्म भूमि न्यायिक व्यक्ति नहीं है। अयोध्या मामले में निर्मोही अखाड़े का खारिज करते हुए कोर्ट ने राम लला विराजमान कानूनी तौर पर मान्यता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा विचार करने योग्य है। इसी के साथ उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता. खुदाई में मिला ढांचा गैर इस्लामिक था। हालांकि एएसआई ये नहीं कहा कि मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी।


आस्था के नाम पर जमीन के मालिकाना हक का फैसला नहीं 

सीजेआई ने कहा दोनों पक्षों की दलीलें कोई नतीजा नहीं देतीं। फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि आस्था पर जमीन के मालिकाना हक का फैसला नहीं किया जा सकता। हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम का जन्म स्थान मानते हैं जबकि मुस्लिम उस जगह नमाज अदा करते थे। हिंदू पक्ष जिस जगह सीता रसोई होने का दावा करते हैं, मुस्लिम पक्ष उस जगह को मस्जिद और कब्रिस्तान बताता है। सीजेआई ने कहा, अंदरूनी हिस्से में हमेशा से पूजा होती थी। बाहरी चबूतरा, राम चबूतरा और सीता रसोई में भी पूजा होती थी।


हिंदू पक्ष ने बाहरी हिस्से में दावा साबित किया, अंदरूनी हिस्सा विवादित

सीजेआई ने कहा कि प्राचीन यात्रियों ने जन्मभूमि का जिक्र किया है। 1949 तक मुस्लिम मस्जिद में नमाज पढ़ते थे इसके बाद इसमें ताला लगवाया गया। मुस्लिमों ने मस्जिदों को कभी नहीं छोड़ा। सीजेआई ने कहा संविधान की नजर में आस्थाओं में भेदभाव नहीं। सीजेआई ने कहा, कोर्ट आस्था नहीं सबूत पर फैसला देती है। हिंदू पक्ष ने बाहरी हिस्से में दावा साबित किया, अंदरूनी हिस्सा विवादित। उन्होंने कहा कि संविधान आस्था की मूल भावना है। उन्होंने कहा कि 1856 से पहले मुस्लिमों का मुख्य गुंबद पर दावा नहीं था।


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