नयी दिल्ली। लोकसभा में पहली परीक्षा पास करने के बाद नागरिकता संशोधन बिल पर सरकार की अग्निपरीक्षा बुधवार को होगी। गृह मंत्री अमित शाह दोपहर दो बजे संशोधन बिल राज्यसभा में पेश करेंगे। इस बीच लोकसभा में बिल का समर्थन करने वाली शिवसेना के यूटर्न और जदयू में खटपट के बाद हालांकि विपक्ष का हौसला बढ़ा है, मगर इसके बावजूद संख्या बल सरकार के साथ है। बिल पर राज्यसभा की मुहर लगते ही तीन पड़ोसी देशों के गैरमुस्लिम अल्पसंख्यकों की भारत की नागरिकता हासिल करने की राह आसान हो जाएगी।
 
 
सोमवार को सरकार ने प्रचंड समर्थन और विपक्ष में बिखराव की बदौलत बिल को आसानी से पारित करा लिया था। हालांकि उच्च सदन की तस्वीर दूसरी है। इस सदन में विपक्ष लोकसभा की तुलना में ज्यादा मजबूत है तो दूसरी तरफ सरकार को अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं है। इस सदन में सरकार की सारी उम्मीदें लोकसभा में बिल का समर्थन करने वाले राजग के बाहर के दलों मसलन बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस के अलावा मनोनीत और निर्दलीय सांसदों पर टिकी है। इस बीच जदयू में बिल के समर्थन के सवाल पर शुरू हुई खटपट और शिवसेना के समर्थन के सवाल पर यूटर्न से विपक्ष को हौसला हासिल हुआ है।

 

लोकसभा में समर्थन के बाद उच्च सदन में शिवसेना ने हालांकि बिल के समर्थन के सवाल पर अगर-मगर करना शुरू कर दिया है, मगर इसकी भी संभावना है कि पार्टी बिल के समर्थन में वोट न दे कर वॉक आउट करने का विकल्प चुन ले। दरअसल महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस के साथ सरकार होने के कारण शिवसेना दबाव में है। खासतौर से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने परोक्ष तौर पर नाखुशी जाहिर कर शिवसेना पर दबाव बढ़ाया है। मगर पार्टी को अपने हिंदुत्व की छवि की भी चिंता है।

 

समर्थन के सवाल पर जदयू में खटपट शुरू हुई है, मगर इसे ज्यादा भाव नहीं दिया जा रहा। जिन दो नेताओं प्रशांत किशोर और पवन वर्मा ने पार्टी के रुख का विरोध किया है, उनकी पार्टी में मजबूत पकड़ नहीं है। नीतीश कुमार ही पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं। ऐसे में इन नेताओं के विरोध के कारण विधेयक को लेकर जदयू के स्टैंड में बदलाव आने की संभावना नहीं है।

 

भाजपा के रणनीतिकारों को कई दलों के कुछ सांसदों के अनुपस्थित रहने की भी उम्मीद है। वर्तमान में राज्यसभा में 239 सांसद हैं। ऐसे में बिल पारित करने के लिए सरकार को 120 सांसदों की जरूरत होगी। इस स्थिति में अगर विपक्ष के कुछ सांसद मतदान के दौरान अनुपस्थित रहते हैं तो बिल पारित कराने के लिए जरूरी समर्थन का आंकड़ा भी कम होगा। लोकसभा में इस बिल पर वोटिंग के दौरान बिल का विरोध करने वाले दलों के करीब 70 सांसद मौजूद नहीं थे।

 

ऐहतियात के तौर पर सरकार ने जरूरी संख्या बल का जुगाड़ कर लिया है। बिल के समर्थन में 124 सांसद हैं। इनमें भाजपा के 83, बीजेडी के सात, अन्नाद्रमुक के 11, जदयू के छह, अकाली दल के तीन, वाईएसआरसीपी के दो, एलजेपी, आरपीआई, एसडीएफ, एनपीएफ, एजीपी के एक-एक और सात निर्दलीय-मनोनीत सांसद बिल के पक्ष में हैं। इन दलों के सांसदों को वोट कराने केलिए भाजपा ने 14 नेताओं की टीम बनाई है। ये सभी नेता लगातार दूसरे दलों के सांसदों के संपर्क में हैं।

 

सरकार को घेरने के लिए विपक्ष की ओर से 20 संशोधन पेश किए जाने की संभावना है। इनमें शिवसेना नागरिकता के बाद ऐसे लोगों को 25 साल तक मताधिकार नहीं देने और इनमें श्रीलंका के भी अल्पसंख्यकों को शामिल करने संबंधी प्रस्ताव देगी।

 

कांग्रेस सांसद और असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा कि असम ने नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध किया, जिसने नॉर्थ-ईस्ट (उत्तर-पूर्व) के राज्यों में शांति व्यवस्था को प्रभावित किया है। ऐसा भाजपा के हठी और तानाशाही रवैये के कारण हो रहा है। 

 
असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में लगातार विरोध प्रदर्शन सामने आ रहे हैं। इसी स्थिति के बारे में मैंने कल गृह मंत्री अमित शाह को चेताया था कि विधेयक पारित करने के लिए उनके पास संख्या बल जरूर होगा लेकिन जब आप इस तरह से लोगों की भावनाओं को कुचल कर आप केवल उत्तर-पूर्व के लोगों को निशाना बना रहे हैं।

 
गोगोई ने कहा कि छात्रों, प्रोफेसरों, सरकारी अधिकारियों और किसानों के साथ-साथ एक सामान्य मजदूर भी इन प्रदर्शनों में भाग ले रहा है। उन्होंने कहा, 'भाजपा ने भरोसा खो दिया है क्योंकि इस पार्टी ने सबको धोखा दिया है। भाजपा नागरिकता संशोधन विधेयक के नाम पर केवल अपनी राजनीति करना चाहती है। शांति और विकास से उनका कोई लेना देना नहीं है।'

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