नयी दिल्ली। कुछ साल पहले ही देश की राजधानी में 16 दिसंबर 2012 को हुई हैवानियत ने मानवता को शर्मसार किया। निर्भया के लिए आंदोलनों का दौर चला और कानून तक में बदलाव कर दिया गया। लेकिन आज पूरे 7 वर्ष बीतने के बाद भी निर्भया के उन दोषियों को सुनाई गई सजा को अंजाम नहीं दिया जा सका है। इन दरिंदों को उनकी माकूल सजा नहीं मिल पाने से महसूस होता है कि देशभर की निर्भयाओं को न्याय मिल पाना आज भी असंभव कार्य है।

 

आरोपित और अदालत :

जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि 16 दिसंबर 2012 की रात हुई दरिंदगी के बाद पुलिस ने सभी छह आरोपित पकड़ लिए। इनमें से राम सिंह ने 11 मार्च 2013 को पुलिस हिरासत में तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। एक आरोपित नाबालिग बताया गया, जिस पर किशोर न्याय बोर्ड में निर्णय हुआ और उसे तीन साल के लिए बाल सुधार गृह भेजा गया।

 

उसकी पहचान कभी जाहिर नहीं की गई। बाकी चार आरोपियों मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, अक्षय ठाकुर और विनय शर्मा को 10 सितंबर 2013 को फांसी की सजा दी गई। 13 मार्च 2014 को हाईकोर्ट और फिर 5 मई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी। फिलहाल चारों जेल में हैं।

 

देश गुस्से से उबला :

सूत्रों कि माने तो इस घटना के बाद देश में गुस्सा का बवंडर उठा, जिसका असर कोने-कोने में हुआ। महिला सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने की मांग की गई, और जस्टिस वर्मा समिति बनी। 2013 के कानूनी संशोधन लागू किए गए। वहीं, किशोर न्याय अधिनियम में 2015 में बदलाव किया गया, हत्या-दुष्कर्म जैसे मामलों में आरोपी को अपराधी मानने की आयु सीमा 18 से घटाकर 16 कर दी गई।

 

कानूनी दांवपेच में उलझी फांसी : 

हैदराबाद दुष्कर्म व हत्याकांड के बाद लोगों में गुस्सा बढ़ा, तो निर्भया के दरिंदों को फांसी देने की प्रक्रिया आगे बढ़ी। दिल्ली के सीएम दफ्तर में पड़ी एक दुष्कर्मी की दया याचिका की फाइल गृह मंत्रालय तक पहुंची। मंत्रालय ने माफी खारिज करते हुए राष्ट्रपति को भेज दी।

 

लेकिन कानूनी दांव-पेच ऐसा कि दुष्कर्मी ने अपनी याचिका होने से ही इनकार कर दिया। इस बीच तंत्र जागा, यूपी से जल्लाद मांगा गया। अब बुधवार 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में चौथे दुष्कर्मी अक्षय की याचिका पर सुनवाई होगी। अगले दिन निचली अदालत डेथ वारंट की अर्जी पर सुनवाई करेगी।

మరింత సమాచారం తెలుసుకోండి: