रांची के दीनदयाल नगर स्थित आईएएस क्लब परिसर रविवार को समाज की एक नई परंपरा का गवाह बना। यहां एक साथ पुरोहित सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके शरण्येत्र्यंबके गौरी... पादरी बाइबल के वचन... और पाहन शादी के मंत्र पढ़ रहे थे। समूचा परिसर नवविवाहित जोड़ों और उनके परिजनों की खुशियों से चहक रहा था। गुलाबी और सफेद पंडाल के नीचे समाज से दरकिनार कर दिए गए (लिव इन में रह रहे) 130 जोड़े शादी के बंधन में बंधे। इनमें 20 साल से 51 साल के जोड़े शामिल थे। एक जोड़ा यहां बाप मधेश्वर गोप और बेटी कलावती का भी था। एक मंडप में दोनों ने सात फेरे लिए। पिता सुधेश्वर गोप ने अपनी पत्नी परमी देवी के साथ और पुत्री कलावती देवी ने अपने पति प्रताप के साथ साथ फेरे लिए।

 

 

 

20 वर्षों से रह रहे थे साथ
सुधेश्वर ने बताया कि वे पिछले 20वर्षों से अपनी पत्नी के साथ रह रहे थे, लेकिन आर्थिक तौर पर कमजोर होने के कारण शादी नहीं कर पाए थे। शादी करने पर उन्हें समूचे गांव को भोज देना होता। इसकी क्षमता उन्हें नहीं थी। इस दौरान उन्हें तीन बच्चे भी हुए। उनमें एक बेटी की शादी आज उनके ही मंडप पर हुई।

 

 

नानी की शादी में शरीक हुआ गोपाल
अपनी नानी की शादी में तीन साल गोपाल भी शरीक हुआ। गोपाल उनकी बेटी कलावती देवी का बेटा है। गोपाल के पिता प्रताप गाड़ी चलाते हैं। उन्होंने बताया कि वे पिछले पांच वर्षों से अपनी पत्नी के साथ थे। शादी की रिवाज अभी पूरी नहीं हुई थी। उन्होंने कहा कि यह उनके लिए खुशी का पल है कि आज वे आधिकारिक रूप से अपनी पत्नी के पति हो गए। अब कोई उन्हें ताना नहीं मारेगा।

 

 

ईंट भट्ठे में होता है प्यार
यहां परिणय सूत्र में बंधने वाले तमाम जोड़ियां दैनिक जीवन में मजदूरी का काम करती हैं। कुछ इनमें में ऐसे थे जिन्होंने गांव में ही एक-दूसरे को पसंद कर साथ रहने का निर्णय कर लिया था। ज्यादार जोड़ियां ऐसी थीं ईंट-भट्टे में काम करने के दौरान मिली थीं। वहीं इन्हें आपस में प्यार हुआ और इन्होंने साथ करने का निर्णय लिया। इनकी शादी में अहम भूमिका निभाने वाली सांगा की सामाजिक कार्यकर्ता जयंती देवी ने बताया कि ये साथ रहने का तो निर्णय ले लेते हैं लेकिन आर्थिक रूप से इतने समर्थ नहीं होते हैं कि ये शादी करें और सामूहिक भोज दें। इसके कारण इन्हें गांव से बार दिया जाता है।

 

 

लायंस क्लब ऑफ रांची कैपिटल ने दी विदाई
नामकुम, कांके व अन्य जिलों के सुदूर गांवों से आए जोड़ों की विधिवत शादी के बाद विदाई भी दी गई। विदाई के वक्त लायंस क्लब ऑफ रांची कैपिटल की ओर से इन जोड़ों को शादी के घर में जरूरत पड़ने वाली सभी गृहोपयोगी सामग्री व अन्य जरूरी सामान दिये गए। संस्था के अशोक गुललिया ने बताया कि इतना ही नहीं इन जोड़ों का आधिकारिक रूप से कोर्ट मैरिज भी कराया जाएगा। इसके अलावा इन्हें मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत मिलने वाली राशि भी दिलाने की कोशिश की जाएगी। उन्होंने बताया कि इसके अलावा संस्था की ओर से इस बार प्रयास किया जा रहा है कि इन जोड़ों को कौशल विकास से भी जोड़ा जाए।

 

 

बाल-विवाह के लिए बदनाम झारखंड में ढुकुआ भी
इन जोड़ों की शादी का आयोजन करने वाली संस्था निमित्त की सचिव निकिता सिन्हा ने बताया कि वह पिछले चार साल से इस तरह की सामूहिक शादी का आयोजन करा रही हैं। ये पांचवा आयोजन है। उन्होंने बताया कि ये 2009 की बात है जब उन्हें इस ढुकुआ का पता चला था। उन्होंने बताया कि तब वह हैरान रह गईं थी कि बाल-विवाह के लिए बदनाम झारखंड में ढुकुआ भी एक परंपरा है। जो पूरी तरह लिव इन रिलेशनशिप की भांति है, लेकिन ढुकुआ की सारी बदनामी महिलाओं के सिर आता है। उन्हें समाज से अलग कर दिया जाता है। हालात ये हैं कि इनकी मृत्यु पर इन्हें इनके गांव में दो गज जमीन भी मय्यस्सर नहीं होती है। इन्हें अलग जगह दफनाया जाता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से ये इस कुरीति को अंत करना चाहते हैं।

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