नयी दिल्ली। आज से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा पर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की जमीन तैयार हो गई है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने जहां इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है। वहीं सरकार ने भी इस मुद्दे पर आक्रामक तेवर दिखाने का निर्णय लिया है। जाहिर तौर पर दिल्ली हिंसा पर सरकार और विपक्ष के बीच सियासी खींचतान का सीधा असर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही पर पड़ेगा।

 

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, वाम दल, एआईएमआईएम, आम आदमी पार्टी समेत कुछ अन्य दलों ने दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा मामले में संसद के दोनों सदनों में कार्यस्थगन प्रस्ताव पेश करने और गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा मांगने की रणनीति बनाई है।

 

आज से शुरू हो रहे बजट सत्र के दूसरे भाग के बहुत हंगामेदार होने के आसार नजर आ रहे हैं। एक तरफ जहां दिल्ली दंगे को लेकर विपक्षी दल एकजुट होकर सरकार को घेरने की रणनीति बना रहे हैं वहीं सरकार हर मुद्दे पर चर्चा के प्रस्ताव के साथ पलटवार की तैयारी में जुटी है।

 

माना जा रहा है कि एक महीने तक चलने वाले इस सत्र के पहले हफ्ते में तो कम से कम सदन के भीतर दंगे की तपिश महसूस की ही जाएगी। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर शुरू हुआ विरोध दिल्ली में हिंसक रूप ले चुका है।

 

बिहार विधानसभा ने एनपीआर को प्रस्तावित नए प्रारूप पर नहीं बल्कि 2010 के प्रारूप के आधार पर ही कराने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। जाहिर है कि इसने भी विपक्षी दलों को नैतिक दबाव बनाने का मौका दे दिया है। बिहार चुनाव अब महज छह सात महीने दूर है।

 

ऐसे में विपक्ष ने कमर कस ली है। बताते हैं कि कांग्रेस ने दूसरे विपक्षी दलों से भी बात कर ली है और संसद में सरकार को एकजुट होकर घेरने की रणनीति बनी है। जाहिर है कि ऐसे मे सरकार के लिए अपने सारे कामकाज को निपटाना आसान नहीं होगा। 

 

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