मस्तिष्क ज्वर यानी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से पीड़ित बच्चों का हाल जानने के लिए मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे ही मुजफ्फरपुर पहुंचे लोगों ने उनको देखते ही 'मुख्यमंत्री वापस जाओ' के नारे लगाने शुरू कर दिए। 


मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एसकेएमसीएच) में उन्होंने आईसीयू में बच्चों को देखा और उनके परिजन से बात की। डॉक्टर्स से इलाज की जानकारी भी ली। उन्होंने डॉक्टर्स से कहा कि मस्तिष्क ज्वर के लिए कोई वायरस जिम्मेदार है, इसका पता लगाना होगा। नीतीश दिल्ली गए हुए थे। सोमवार को ही वह पटना लौटे।


उधर, एसकेएमसीएच के बाहर पीड़ित बच्चों के परिजन को मुख्यमंत्री से नहीं मिलने दिए जाने पर हंगामा हो गया। ये लोग अस्पताल की खराब स्थिति से नाराज थे। लोगों का कहना था कि वे मुख्यमंत्री से मिलकर बात कहना चाहते हैं, लेकिन अस्पताल प्रशासन उन्हें मिलने नहीं दे रहा। लोगों ने मुख्यमंत्री वापस जाओ और नीतीश मुर्दाबाद के नारे लगाए।


नीतीश ने एईएस और लू से निपटने के लिए सोमवार को आपात बैठक बुलाई थी। इसमें मुजफ्फरपुर में एसकेएमसीएच परिसर में 100 बेड का नया पीडियाट्रिक आईसीयू बनाने का फैसला किया गया। साथ ही एईएस से जान गंवाने वाले बच्चों के परिजन को 4-4 लाख रुपए मुआवजा देने का भी निर्णय लिया।
 
रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, राज्यमंत्री अश्वनी चौबे, बिहार सरकार के मंत्री मंगल पांडे मुजफ्फरपुर पहुंचे थे। बीते 14 दिनों में एईएस से 139 बच्चों की मौत हो चुकी है। ऐसे में मुख्यमंत्री के न पहुंचने को लेकर लगातार विपक्षी दल प्रदर्शन कर रहे थे।


मुजफ्फरपुर के दो बड़े अस्पतालों में 151 बच्चे भर्ती
मस्तिष्क ज्वर से सोमवार को 6 और बच्चों की मौत हो गई। 21 की हालत गंभीर बनी हुई है। एसकेएमसीएच समेत मुजफ्फरपुर के दो बड़े अस्पताल में 151 बच्चे भर्ती हैं। इलाज के अभाव में मासूमों की मौत का सिलसिला जारी है। पर बीमारी क्या है? इस बारे में डाॅक्टर अब तक कुछ भी स्पष्ट नहीं कर पा रहे। डॉक्टर यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि बच्चों को दवा किस बीमारी की दें। औसतन यहां हर तीन घंटे में एक बच्चे की मौत हुई।


एक बेड पर तीन-तीन बच्चे भर्ती
एसकेएमसीएच की हालत यह है कि यहां एक बेड पर तीन-तीन बच्चे हैं। आईसीयू में गंभीर बच्चाें की संख्या बढ़ जाने पर सामान्य वार्ड में ट्रांसफर कर दिया जाता है। डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी के कारण बच्चाें में ग्लूकाेज और साेडियम की कमी हाेती है। इलाज के नाम पर उन्हें यही चढ़ाया जा रहा है। जाे बच्चे बच गए ताे ठीक, नहीं तो उनकी माैत तय है।

अब बारिश का इंतजार
एईएस का मुकाबला करने में नाकाम प्रशासन अब बारिश के इंतजार में है, क्योंकि बारिश के बाद यह बीमारी अक्सर थम जाती है। एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर के शिशु रोग विभाग के प्रमुख डॉ. गोपाल शंकर साहनी ने बताया, ‘‘यह बीमारी न ताे वायरल है और न ही इंसेफेलाइटिस। पुणे, दिल्ली या देश ही नहीं, अटलांटा के बेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में भी इसकी जांच हाे चुकी है। कहीं भी वायरस नहीं मिला। लीची से भी कुछ लाेग इस बीमारी को जोड़ते हैं, लेकिन इससे संबंध साबित नहीं हुआ। 2005 में मैंने इस पर शाेध किया। मैंने यही पाया कि जब भी तापमान 38 डिग्री से ज्यादा और आर्द्रता 60-65% पर पहुंचती है, इस बीमारी के मामले सामने आने लगते हैं। मौसम इस बीमारी की मुख्य वजह है।’’

कई बच्चों की जान बची, लेकिन आंखों की रोशनी चली गई
मुजफ्फरपुर में कांटी के काेठिया निवासी टुनटुन राम ने बताया कि उनका 5 साल के बेटे को बुखार हुआ तो तुरंत भर्ती कराया। जान बच गई, लेकिन आंखों की राेशनी चली गई। साहेबगंज के माेरहार की हेमांती देवी 6 साल के बच्चे के साथ अस्पताल में हैं। दाे दिन पहले ही बेटे की तबीयत खराब हुई थी। यहां लाने पर पहले आईसीयू में भर्ती कराया गया, लेकिन ग्लूकाेज चढ़ाने के साथ हाेश आते ही सामान्य वार्ड में ट्रांसफर कर दिया गया। वह न ताे कुछ समझ पा रहा है और न ही बाेल पा रहा है। ऐसे कई बच्चे हैं, जिन पर अभी प्रशासन की नजर ही नहीं जा रही।

5 साल में सरकार के न बयान बदले, न हालात
बिहार में 2014 में बच्चों की मौतें हुईं तो 22 जून 2014 को पटना आए तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था- यहां 100 बेड का अलग अस्पताल बनाने का वादा किया था। अब मस्तिष्क ज्वर से फिर लगातार हालात बिगड़े तो 5 साल बाद यानी 16 जून 2019 केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने वादा दोहराया। उन्होंने शोध की बात फिर कही। 100 बेड के अस्पताल और शोध की बात दोहराई।

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