नयी दिल्ली। आंध्र प्रदेश से तेलुगू देशम पार्टी के 4 राज्यसभा सांसदों के बीजेपी में शामिल होने से उच्च सदन में पार्टी को ताकत मिली है। कहा जाता है कि बीजेपी ने गुजरात मॉडल को देश की राजनीति में लागू कर लोकसभा में पूर्ण बहुमत की मंजिल तय की। अब आंध्र प्रदेश मॉडल को उच्च सदन में बहुमत के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। आने वाले दिनों में ऐसे कुछ और मामले देखने को मिल सकते हैं। गुरुवार को टीडीपी के 4 सांसदों ने राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू को खत लिखकर दल बदलने की जानकारी दी थी। सांसदों ने दलबदल का यह फैसला उस वक्त लिया, जब पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू परिवार के साथ यूरोप में छुट्टियां बिता रहे हैं।

क्या कहता है नियम

दलबदल विरोधी कानून के मुताबिक यदि दो तिहाई से कम सांसद या विधायक पार्टी बदलते हैं तो उनकी सदस्यता स्वत: खत्म हो जाएगी। हरियाणा के विधायक गया लाल ने 1967 में एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली थी। ऐसे लोगों पर रोकथाम के लिए इस कानून को बनाया गया था। 4 दिसंबर, 2017 को जेडीयू के दो सांसदों की सदस्यता इस कानून के तहत रद्द कर दी गई थी। यदि सदन का कोई सदस्य दो तिहाई संख्या के बिना दलबदलता है तो उसकी सदस्यता स्वत: समाप्त मानी जाएगी। हालांकि पार्टी की ओर से बाहर किए जाने पर ऐसा कोई खतरा नहीं है। 

एनडीए के लिए मायने रखता है हर एक सांसद 

उच्च सदन में कुल 250 सांसद होते हैं। फिलहाल सदन में 245 सदस्य हैं, जिनमें से 241 निर्वाचित हैं और 4 मनोनीत सदस्य हैं। इनमें से तीन सदस्य एनडीए की ओर से नामित हैं। यूपीए की ओर से नामित सदस्य का कार्यकाल अगले वर्ष की शुरुआत में खत्म हो रहा है। सदन में बहुमत का आंकड़ा 123 है। बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 71 सांसद हैं, लेकिन वह बहुमत से दूर है। उसके सहयोगी दलों में से जेडीयू के 6, अकाली दल के 3, शिवसेना के 3, आरपीआई का एक, असम गण परिषद का एक, बीपीएफ और एसडीएफ का भी एक-एक सांसद है। इन सभी को मिलाकर आंकड़ा 87 तक पहुंच जाता है। एआईएडीएमके के 13 सांसद है, जो एनडीए को कई बार समर्थन दे देते हैं। नामित सदस्यों में से तीन का समर्थन भी एनडीए को है। इसके अलावा तीन अन्य निर्दलीय सांसदों के साथ यह आंकड़ा 106 तक पहुंचता है। टीआरएस के 6, वाईएसआर के 2 और बीजेडी के 5 सांसद भी एनडीए के पाले में मुद्दों के आधार पर जाते रहे हैं। अब यदि टीडीपी के भी 4 सांसदों को जोड़ लिया जाए तो एनडीए के लिए 123 का आंकड़ा जुटाने की मुश्किल कुछ कम होगी। 5 जुलाई को 6 राज्यसभा सीटों पर उपचुनाव के बाद एनडीए का आंकड़ा और बढ़ने की संभावना है। 

एनडीए के लिए क्यों जरूरी है बहुमत 

बीते 5 सालों में एनडीए को उच्च सदन में कई विधेयकों पर मुंह की खानी पड़ी। इसकी वजह यह थी कि उसके पास यहां बहुमत से कम सदस्य हैं। मोटर वीकल ऐक्ट, नागरिकता संशोधन विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक उच्च सदन में पारित नहीं हो सका। लोकसभा से पारित होने के बाद भी तीन तलाक बिल यहां गिर गया। यहां तक कि 2016 में राष्ट्रपति के संबोधन तक में संशोधन के लिए विपक्ष ने सरकार को उच्च सदन में बाध्य कर दिया था।


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