मुजफ्फरपुर देश-दुनिया में चर्चित बिहार के मुजफ्फरपुर की रसभरी लीची इस साल अफवाहों की भेंट चढ़ गई। राज्य के उत्तरी हिस्से में अक्यूट इंसेफ्लाइटिस बीमारी (एईएस) के लिए लीची को जिम्मेदार बताए जाने के बाद इस साल जहां मीठी लीची ‘कड़वाहट’ का शिकार हुई, वहीं लीची किसान और व्यापारियों को भी लीची के कारोबार में नुकसान उठाना पड़ा है। बिहार के मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के जिलों में एईएस या चमकी बुखार से अब तक 160 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। 

एईएस के लिए कई लोग लीची को जिम्मेदार बता रहे हैं। हालांकि मुजफ्फरपुर के चिकित्सक और राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र इसे सही नहीं मानता है। मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक विशाल नाथ कहते हैं कि लीची पूरे देश और दुनिया में सैकड़ों सालों से खाई जा रही है, लेकिन यह बीमारी कुछ सालों से मुजफ्फरपुर में बच्चों में हो रही है। इस बीमारी को लीची से जोड़ना झूठा और भ्रामक है। ऐसा कोई तथ्य, कोई शोध सामने नहीं आया है, जिससे यह साबित हुआ हो कि लीची इस बीमारी के लिए जिम्मेदार है।

'अफवाह से लीची के कारोबार में हुआ 100 करोड़ रुपये का नुकसान' 
हालांकि इस भ्रामक खबर ने लीची व्यापारियों की कमर तोड़ दी है। लीची के बड़े व्यवसायी और ‘लीचीका इंटरनेशनल प्राइवेट कंपनी’ के मालिक के. पी. ठाकुर ने बताया कि इस साल एईएस के डर ने थोक विक्रेताओं को अपनी मांग में कटौती के लिए मजबूर किया है। उन्होंने हालांकि कहा कि एईएस का प्रभाव सीजन के अंत में हुआ, जिस कारण नुकसान थोड़ा कम हुआ। बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह इस अफवाह को लीची व्यापारियों के लिए बड़ा घाटा बताते हैं। उन्होंने कहा, ‘पिछले साल भारत सरकार के बौद्धिक संपदा विभाग द्वारा शाही लीची को बिहार का पेटेंट माना गया है। इस साल कुछ नेताओं और पत्रकारों ने एईएस के नाम पर लीची को बदनाम किया है।’ उन्होंने कहा, ‘बिहार में 32 हजार हेक्टेयर जमीन पर लीची के पेड़ लगे हैं। इस व्यवसाय से करीब एक लाख लोग जुड़े हुए हैं। यहां से 200 करोड़ रुपये का व्यापार होता था, परंतु अफवाह की वजह से लीची कारोबार से जुड़े लोगों को करीब 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।’ 

'आम के उत्पादकों ने लीची को बदनाम करने के लिए रची साजिश' 
लीची के कुछ व्यापारी तो इसे एक साजिश तक बता रहे हैं। लीची के बडे़ उत्पादक और बिहार सरकार द्वारा ‘किसान भूषण’ सम्मान से सम्मानित एस. के. दूबे ने कहा कि देश के दक्षिणी हिस्से में इस मौसम में आम का उत्पादन होता है, जिसका स्वाद बिहार की लीची के मुकाबले खराब है। उन्होंने दावा किया, ‘हाल के कुछ वर्षों में दक्षिण भारत में बिहार की शाही लीची की मांग बढ़ी है। यही कारण है कि आम उत्पादकों ने लीची को बदनाम करने की ऐसी साजिश रची है।’ लीची पर पैदा हुए विवाद के कारण झारखंड में भी लीची की मांग तेजी से घटी है। फल विक्रेताओं का कहना है कि इस मौसम में लीची की आमद बहुत ज्यादा होती है। लेकिन चमकी बुखार की वजह लीची को बताने के कारण कारोबार आधे से भी कम हो गया है। पहले लीची जहां आराम से 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही थी, वहीं अब 40 से 50 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है, फिर भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं। 

निराश किसानों ने पेड़ पर ही छोड़ दीं पकी हुई लीची 
रांची के हिंदपीढ़ी के फल आढ़ती मोहम्मद मुस्तफा कहते हैं, ‘चमकी बुखार की वजह से कारोबार पर बहुत फर्क पड़ा है। एक महीने पहले तक जहां लीची की बिक्री तेजी पर थी। वहीं अब इसकी मांग 60 से 70 प्रतिशत तक घट गई है। अब तो पिछले एक सप्ताह से लीची मंगवा भी नहीं रहे हैं।’ उल्लेखनीय है कि उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, वैशाली, सीतामढ़ी, पश्चिमी चंपाराण जिले में गर्मी के मौसम में लीची की पैदावार होती है। एक अनुमान के मुताबिक, देश की 52 प्रतिशत लीची का उत्पादन बिहार में होता है। एक लीची बगान के मालिक अपने बगान की तरफ दिखाते हुए कहते हैं, ‘ये लीची सब पेड़ पर ही सड़ गई है। चमकी बुखार की अफवाह की वजह से लीची बिकी ही नहीं। जो एक बक्सा लीची 800-1000 रुपये में बिकती थी, वह 100-200 रुपये में बिकने लगी। इस वजह से व्यापारियों ने लीची पेड़ पर ही छोड़ दिए।’ 

'165 लीची खाने के बाद घटेगी शरीर में ग्लूकोज की मात्रा' 
मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एसकेएमसीएच) के अधीक्षक डॉ. एस. के. शाही भी कहते हैं कि एईएस के लिए लीची को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा, ‘कुपोषित बच्चों के शरीर में रीसर्व ग्लाइकोजिन की मात्रा भी बहुत कम होती है, इसलिए लीची खाने से उसके बीज में मौजूद मिथाइल प्रोपाइड ग्लाइसीन नामक न्यूरो टॉक्सिनस जब बच्चों के भीतर ऐक्टिव होते हैं, तब उनके शरीर में ग्लूकोज की कमी हो जाती है।’ उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि एक व्यक्ति जब 165 लीची खाएगा, तब ग्लूकोज की कमी शरीर को नुकसान करने वाली स्थिति में पहुंचेगी और कोई भी बच्चा 165 लीची नहीं खा सकता। बहरहाल, एईएस के मामले में लीची की मुफ्त में हुई बदनामी से लीची के कारोबार पर असर दिख रहा है, जिससे लीची व्यापारियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा, और साथ ही लीची के भविष्य पर भी एक प्रश्नचिह्न लग गया है। 



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