डॉ. कैलासावादिवू सिवन कन्याकुमारी के तरक्कनविलाई गांव से हैं। एक किसान परिवार में जन्में डॉ. के सिवन आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 50 वर्ष पूरे कर चुके संस्थान के नवें अध्यक्ष हैं। अपने परिवार में से वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो ग्रेजुएट हुए है, इनसे पहले कोई भी इस स्तर तक नहीं पढ़ा है। तमिल मीडियम सरकारी स्कूल से डॉ. कैलासावादिवू सिवन ने पढ़ाई की और इसके बाद 1980 में उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर की थी। ग्रेजुएशन के बाद उन्हें मास्टर्स कोर्स करने के लिए आईआईएससी बैंगलोर में अवसर प्राप्त हुआ। मास्टर्स पूरी करते ही डॉ. कैलासावादिवू सिवन 1982 में वे इसरो से जुड़ गए।डॉ. कैलासावादिवू सिवन अपनी कड़ी मेहनत के चलते आज इतनी बड़ी संस्था का हिस्सा है और आज देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की ऐतिहासिक उपलब्धि के नेतृत्वकर्ता बने।
बता दें कि डॉ. कैलासावादिवू सिवन को ‘रॉकेट मैन’ कहा जाता है। डॉ. कैलासावादिवू सिवन को यह नाम विभिन्न सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और क्रायोजेनिक इंजन के विकास में योगदान की वजह से रखा गया है। डॉ. कैलासावादिवू सिवन को अपने परिवार या किसी और से भी कोई मार्गदर्शन नहीं मिला था लेकिन उसके बाद भी डॉ. कैलासावादिवू ने अपनी लगन औरकठिन परिश्रम से यह मुकाम हासिल किया है और पूरी दुनिया उन्हें जानती है। आपको बता दें कि ‘रॉकेट मैन’ डॉ. कैलासावादिवू ने जीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क 3 के विकास में अहम भूमिका निभाई है और उन्होंने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) प्रोजेक्ट में शामिल हो इसकी डिजाइनिंग में योगदान भी दिया। 2006 में आईआईटी बॉम्बे से डॉ. कैलासावादिवू ने अपनी पीएचडी पूरी की है। भारत ने चंद्रयान-2 का निर्माण कर अपना वर्चस्व पूरी दुनिया में स्थापित किया है क्योंकि यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब लैंडिग करेगा और ऐसा करने वाला सबसे पहला देश भारत ही है। इससे पहले भी भारत ने अपना चंद्रयान-1 भेजकर चांद पर बर्फ होने की बात सामने रखी थी जिसकी पुष्टि नासा ने भी की थी।