नई दिल्ली। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली 67 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद शनिवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पक्ष और विपक्ष के कई दिग्गज नेताओं ने उनके निधन पर शोक जताया है।


पीएम मोदी ने कल अपने विदेश दौरे के दौरान दुबई में एक कार्यक्रम में कहा कि मैं कल्पना नहीं कर सकता हूं कि मैं इतना दूर बैठा हूं और मेरा एक दोस्त चला गया। पीएम मोदी ने कहा कि कुछ दिन पहले हमारी पूर्व विदेश मंत्री बहन सुषमा जी चली गईं और आज मेरा दोस्त अरुण चला गया। अरुण जेटली के निधन पर हर खास और आम उन्हें अपने तरीके से याद कर रहा है और श्रद्धांजलि दे रहा है।


अरुण जेटली ना सिर्फ एक कुशल राजनेता, वक्ता और वकील थे बल्कि एक शानदार शख्सियत के मालिक भी थे। अरुण जेटली को उनके रहन सहन के खास तरीके के लिए भी जाना जाता है। जेटली का मानना था कि आप कैसे रहते हैं, कैसे बोलते हैं इस सब का बहुत दूरगामी असर होता है। र्व केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने कल न्यूज़ मीडिया से बात करते हुए बताया, ''एक दिन फोन पर उनकी अरुण जेटली से बात हुई। जेटली ने पूछा कि अभी कहां हो तो मैंने जवाब दिया कि क्षेत्र के भ्रमण पर जा रहा हूं। इस उन्होंने कहा कि किसी बड़ी गाड़ी से मत जाना छोटी गाड़ी से जाना। जहां जा रहे हो उस जगह के हिसाब से ही गाड़ी का चयन करना चाहिए।''


अरुण जेटली को मंहगी घड़ियों, मंहगे पेनों और जानवार शॉल का शौक था. उनके जानने वाले बताते हैं कि अरुण जेटली 'पैटेक फ़िलिप' ब्रांड की घड़ी पहनते थे. 'पैटेक फ़िलिप' 180 साल पुरानी स्विजरलैंड स्थित लग्जरी घड़ियों की नामी कंपनी है। अरुण जेटली के पास घड़ियों के बहुत बड़ा कलेक्शन था.


वहीं उनके पेन के शौक की बात करें तो वो 'मो ब्लां' कंपनी के पेन का इस्तेमाल करते थे. इस कंपनी का कोई भी नया पेन लॉन्च होने पर जेटली उसे जरूर खरीदते थे। अगर भारत में यह उपलब्ध नहीं होते थे तो जेटली उन्हें अपने दोस्तों की मदद से विदेश से मंगवाते थे। 'मो ब्लां' कंपनी भी लग्जरी पेन बनाने के लिए जानी जाती है। यह कंपनी करीब 113 साल पुरानी है और इसका मुख्यालय जर्मनी के हैमबर्ग में है।


सार्वजनिक कार्यक्रमों की तस्वीरों में अरुण जेटली को आपने अक्सर विशेष अंदाज में शॉल ओढ़े देखा होगा। अरुण जेटली के पास विशेष जामवार शॉलों का बहुत बड़ा कलेक्शन था। जामवार शॉल कश्मीर में विशेष पश्मीना ऊन से बनने वाली शॉलें होती हैं। यह पूरी तरह से हाथ से बनी विशेष शॉल होती है। कई बार एक शॉल को पूरा होने में दस साल से भी ज्यादा का वक्त लगता है। इसीलिए इनकी कीमत ज्यादा होती है।


ये बात 18 अगस्त, 2011 की है। उस समय संसद का सत्र चल रहा था। राज्यसभा में एक बेहज जरूरी मुद्दे पर चर्चा होने वाली थी। ये मसला कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन से जुड़ा हुआ था। उनपर महाभियोग की कार्रवाई चलाने के लिए सदन में बहस होने वाली थी। इस बहस में शामिल होने के लिए जब अरुण जेटली संसद पहुंचे तो उनके पास ढ़ेर सारी किताबें जिसे देखकर वहां मौजूद पत्रकार प्रश्न पूछे बिना रह नहीं सके। इसके बाद अरुण जेटली ने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने ये किताबें 35 हजार रुपए में जस्टिस सौमित्र सेन से जुड़े मामले में बहस की तैयारी के लिए खरीदी हैं। हालांकि, आपको बता दें कि यह मामला राज्यसभा से पास हो गया था लेकिन लोकसभा में मामले के आने से पहले ही जस्टिस सौमित्र सेन ने इस्तीफा दे दिया था।




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