
हिन्दू धर्म में माँ दुर्गा के नौ रूपों के पूजा नवरात्रि के दिनों में किया जाता हैं और नवरात्रि का आरंभ बीते रविवार 29 सितंबर से हो चुका हैं। ऐसे में सभी लोग माँ को प्रसन्न करने के लिए उपवास , पूजा-अर्चना आदि कर रहे हैं। पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना उत्तम माना जाता हैं और नवरात्रि के दिनों में दुर्गा चालीसा और दुर्गासप्तशती का पाठ किया जाता हैं लेकिन यदि आप सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करते हैं तो आपको दुर्गासप्तशती के बराबर लाभ मिलेगा।
श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोत्र
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्। येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।। न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।। 2।। कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्। अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।। गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।। अथ मंत्र : ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

इति मंत्र:
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि। नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।। नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।। जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।। क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।। विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।। धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।। हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।। अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।। पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।। सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।। इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे। अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।। यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्। न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
यह सिद्ध कुंजिका स्तोत्र गोरी तंत्र रुद्रयामल से लिया गया हैं और शिव-पार्वती का सम्मान हैं, इसमें बताया गया कि यदि इसका पाठ करते हैं तो आपको दुर्गासप्तशती के बराबर फल मिलता हैं। जो भी भक्त इस मंत्र का पाठ करता हैं या फिर सुनता हैं तो उसे सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती के बराबर फल मिलता हैं क्योंकि दुर्गासप्तशती 13 अध्याय वाला हैं और इसका पाठ करना कठिन होता हैं। यदि जो भी व्यक्ति इसका पाठ प्रतिदिन करता हैं या सुनता हैं तो उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं, उसे अपने जीवन में कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होती हैं। इसलिए नवरात्रि के दिनों में इस मंत्र का जाप करे या फिर सुने, जिससे देवी की कृपा आपके ऊपर हमेशा बनी रहे।
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