जैसा की हम सभी जानते हैं बीते रविवार से शारदीय नवरात्रि का पर्व शुरू हो चुका हैं और लोगों ने कलश स्थापना के साथ ही माँ की पूजा-अर्चना शुरू कर दी हैं, असल में वाराणसी में शारदीय नवरात्रि का बहुत ही खास महत्व हैं, यहाँ आकर्षक पूजा-पंडाल सजाया जाता हैं और देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता हैं। वाराणसी को मंदिरों का शहर कहा जाता हैं और वाराणसी ही एक ऐसा शहर हैं जहां पर नौ देवियों और नौ गौरियों का अलग-अलग मंदिर हैं और यहाँ नवरात्रि के दिनों में भारी भीड़ होती हैं।


(1) शैलपुत्री
प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि का आरंभ होता हैं और इसी दिन ही कलश स्थापना की जाती हैं, नवरात्रि के पहले दिन देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री का पूजन किया जाता हैं। माँ शैलपुरी हिमालय की पुत्री हैं और काशी में इनका मंदिर मढिया घाट में है, जो जैतपुरा थाना क्षेत्र के अलईपुर में है।


(2) ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती हैं और इनकी पूजा 30 सितंबर, सोमवार को हैं, ब्रह्म का अर्थ तप है और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली, तप का आचरण करने वाली देवी के रूप में भगवती दुर्गा के द्वितीय स्वरूप का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा और इन्होने भगवान को अपने पति के स्वरूप में पाने के लिए घोर तप किया था| बता दें कि काशी में देवी ब्रह्मचारिणी का मंदिर काल भैरवमंदिर के पीछे सजी मंडी से दाहिनी तरफ गली में है, जो वर्तमान दुर्गा घाट के नाम से जाना जाता है।



(3) चंद्रघंटा
नवरात्रि का तीसरा दिन एक अक्टूबर को पड़ रहा हैं, इस दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी| ऐसा कहा जाता हैं कि इनका ध्यान करने से व्यक्ति का इहलोक और परलोक दोनों सुधार जाता हैं। देवी माँ के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र शुभोभित है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा और ये वाराणसी क्षेत्र के मध्य में स्थित हैं। इनका मंदिर चौक थाने के निकट मजार के सामने वाली गली में है।


(4) कूष्मांडा
कूष्मांडा, देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं और इनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती हैं| ऐसी मान्यता हैं कि शारदीय नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर देवी के कुष्मांडा स्वरूप का दर्शन-पूजन करने से मनुष्य के समस्त पापों का क्षय हो जाता है और सभी दुखों का भी अंत होता हैं। वाराणसी में देवी कुष्मांडा का मंदिर दुर्गाकुंड इलाके में विशाल कुंड के निकट है और ऐसा माना जाता है कि इस कुंड का सीधा संबंध मां गंगा से है, इतना ही नहीं इसका जल कभी नहीं सूखता है।


(5) स्कंदमाता
नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है| देवी के इस रूप की पूजा-अर्चना से जहां व्यक्ति की संपूर्ण मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं वहीं उसके मोक्ष का भी मार्ग सुगम्य हो जाता है। ये स्कंद कार्तिकेय की माता हैं, जिसकी वजह से इन्हें स्कंदमाता नाम मिला है। वाराणसी में स्कंदमाता का मंदिर जैतपुरा स्थित बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर में है और सिर्फ नवरात्रि में ही पूरे दिन देवी का मंदिर खुला रहता है।
 
(6) कात्यायनी
देवी दुर्गा के छठे स्वरूप में माँ कात्यायनी की पूजा की जाती हैं और इनकी पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती हैं| स्कन्द पुराण के मुताबिक कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन ने घोर तपस्या करके भगवती परांबा से अपनी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा था और उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ा, वाराणसी में देवी का विग्रह संकठा घाट पर है।


(7) कालरात्रि
नवरात्रि के सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा की जाती हैं, ये अंधकारमय परिस्थितियों का नाश करती हैं और अपने भक्तो की काल से भी रक्षा करती हैं। देवी कालरात्रि के दर्शन-पूजन से नौ ग्रहों द्वारा खड़ी की जाने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं, वाराणसी में देवी कालरात्रि का मंदिर विश्वनाथ मंदिर के निकट कालिका गली में स्थित है।



(8) महागौरी
नवरात्रि के अष्टमी तिथि को महागौरी की पूजा की जाती हैं, इनका संबंध माँ गंगा से भी हैं| ऐसी मान्यता हैं कि महागौरी स्वरूप के दर्शन मात्र से पूर्व संचित समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं देवी की साधना करने वाले लोगों को समस्त लौकिक एवं अलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। वाराणसी में देवी अन्नपूर्णा ही महागौरी का स्वरूप हैं।


(9) सिद्धिदात्री
नवमी तिथि को माँ सिद्धिदात्री की आराधना की जाती हैं| ऐसा कहा जाता हैं कि देवी की साधना से समस्त प्रकार की सद्कामनाएं पूर्ण होती हैं और भगवान शिव को भी सिद्धिदात्रि की कृपा से ही समस्त सिद्धियां प्राप्त हुईं। वाराणसी में देवी सिद्धिदात्रि का मंदिर मैदागिन क्षेत्र में गोलघर क्षेत्र स्थित सिद्धमाता गली में विद्यमान है।

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