नयी दिल्ली। अपनी शुरुआत के दस साल बाद भारत में राष्ट्रीय डिजिटल आइडेंटिटी सिस्टम यानी बायोमीट्रिक आधार यूआईडी का फैलाव देशव्यापी हो चुका है। इसके बावजूद बहुत बड़ी संख्या में बेघर और ट्रांसजेंडर लोग आज भी इस व्यवस्था से महरूम हैं और उन्हें बहुत सारी आवश्यक सेवाओं से वंचित होना पड़ रहा है। इस बात का दावा एक नए अध्ययन में किया गया है।

 

हालिया सोमवार को जारी की गई कंसल्टिंग फर्म डालबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश में अभी तक करीब 1.2 अरब लोगों को आधार कार्ड जारी हो चुका है। यह विश्व का सबसे बड़ा बायोमीट्रिक पहचान तंत्र है। 12 अंकों वाला यह यूनिक नंबर किसी भी नागरिक की जिंदगी में स्कूल के नामांकन से लेकर टैक्स चुकाने तक के हर छोटे-बड़े आवश्यक काम का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है।

 

लेकिन आज भी देश में करीब 10.2 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके पास आधार कार्ड मौजूद नहीं है। इस आंकड़ें में 30 फीसदी हिस्सेदारी देश की बेघर जनसंख्या की है और चौथाई से भी ज्यादा हिस्सा थर्ड-जेंडर नागरिकों का है।

 

आधार प्रक्रिया का संचालन करने वाले भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन दिल्ली के एडवोकेसी ग्रुप हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क की कार्यकारी निदेशक शिवानी चौधरी का कहना है कि इस प्रक्रिया में बेघर लोग ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

 

बेघर लोगों के पास अपनी रिहाइश का कोई सबूत नहीं होता, जबकि भारत में सभी तरह के सरकारी कागजात पाने के लिए यह अनिवार्य तौर पर पेश करना होता है। उन्होंने थॉमसन रायटर्स  फाउंडेशन से बातचीत में बताया कि बेघर होने के चलते वे पहचान के अधिकतर अधिकारिक तरीकों से महरुम रहते हैं और इसी कारण उन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं व अपने अधिकारों से बहिष्कृत होना पड़ता है।

 

असम में एनआरसी से छूटने का भी यही कारण

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आधार से महरूम रहने वाले लोगों में उत्तर-पूर्वी राज्य असम के भी 90 फीसदी नागरिक शामिल हैं, जहां अगस्त में जारी किए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के फाइनल प्रारूप में करीब 20 लाख लोगों को देश का नागरिक नहीं माना गया है।

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वंचित वर्ग के सबसे ज्यादा वंचित वर्ग के लोगों में से अधिकतर के पास आधार कार्ड होने की संभावना कम है और उनके आधार डाटा में त्रुटि होने की संभावना बहुत ज्यादा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आधार डाटा में त्रुटि भी एनआरसी से इन लोगों के वंचित रहने का बड़ा कारण है।

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