शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे से राजनीति का ककहरा सीखने वाले उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए हैं। भाजपा के साथ हुए विवाद और विपरीत विचारधारा रखने वाली पार्टियों से गठबंधन कर उद्धव ने अपने राजनैतिक सूझबूझ और दूरदर्शिता का बखूबी परिचय दिया है। भावनाओं में बहे बिना उन्होंने व्यवहारिक राजनीति का परिचय दिया जिसकी वजह से महाराष्ट्र को पहली बार ठाकरे परिवार से मुख्यमंत्री मिला। बाल ठाकरे के निधन के बाद राजनीतिक गलियारों में सवाल गूंज रहा था कि क्या अब शिवसेना उतनी सशक्त नहीं रह पाएगी, लेकिन अपने पिता से विरासत में मिले राजनीतिक अनुभव से उन्होंने शिवसेना को मजबूती दी। पहली बार ठाकरे परिवार से उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे ने वर्ली से विधानसभा चुनाव जीता।

उद्धव ठाकरे युवा काल से ही शिवसेना के मुखपत्र सामना में संपादकीय विभाग में काम करने लगे थे। इस दौरान उद्धव ने पार्टी की विचारधारा को समझा। हालांकि, बाल ठाकरे ने उन्हें पार्टी के कामकाज से दूर ही रखा। बाल ठाकरे अपने साथ सहयोगी के रूप में हमेशा से भतीजे राज ठाकरे को आगे रखते थे। कहा जाता है कि बाल ठाकरे के समय शिवसेना में नंबर दो के नेता राज ठाकरे ही थे। राज ने अपनी सूझबूझ और राजनीतिक समझ से पार्टी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

 

परिवार में कलह और उद्धव-राज की राहें हुई जुदा

साल 2000 में पार्टी में बाल ठाकरे के असली उत्तराधिकारी को लेकर छिड़ी जंग ने ठाकरे परिवार को बांट दिया। एक तरफ राज ठाकरे थे जो मेहनत से बनाई अपनी राजनीतिक जमीन को खोना नहीं चाहते थे, जबकि दूसरी तरफ उद्धव थे जिनके पास बाल ठाकरे का बेटा होने का विशेषाधिकार था। महीनों तक चली उठापठक के बाद राज ठाकरे ने साल 2006 में शिवसेना छोड़ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक पार्टी बना ली। इस पार्टी को उन्होंने राज्य की राजनीति में सक्रिय किया, हालांकि उन्हें इससे अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

 

वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के शौकीन उद्धव

उद्धव ठाकरे बचपन से ही वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के शौकीन रहे हैं। वे राजनीति से दूर अपने फोटोग्राफी के काम में मगन रहते थे। वह इससे जुड़ी प्रदर्शनियों और पर्यावरण से जुड़े कार्यक्रमों का आयोजन भी कराते थे। उन्होंने कई फोटो बुक्स का भी प्रकाशन करवाया जिनमें राज्य के लोगों, जनजीवन और पर्यावरण का मुद्दा प्रमुख रहा है।

 

उद्धव ठाकरे का परिवार

59 वर्षीय उद्धव के परिवार में पत्नी रश्मि के अलावा दो पुत्र हैं आदित्य और तेजस। आदित्य सियासत में अब एक जाना माना चेहरा हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में आदित्य वर्ली सीट से खड़े हुए और जीतकर आए। दूसरे बेटे तेजस का स्वभाव थोड़ा अलग है। उनका राजनीति में रुझान कम है। इस समय वे न्यूयार्क की बफेलो सिटी के कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं।

 

उद्धव ठाकरे का राजनैतिक सफर

बाल ठाकरे के रहते उद्धव ने राज्य की राजनीति में दिलचस्पी नहीं दिखाई। उद्धव ठाकरे ने सबसे ज्यादा सुर्खी तब बटोरी जब उन्हें शिवसेना प्रमुख बनाया गया। साल 2002 के बीएमसी चुनाव में उन्होंने शिवसेना के लिए जमकर प्रचार किया। इस चुनाव में इनकी पार्टी को अपेक्षित सफलता भी मिली। इसके बाद साल 2003 में उद्धव को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया। अगले साल उन्हें शिवसेना का पूर्ण अध्यक्ष घोषित कर दिया गया।

 

भाजपा के साथ उतार-चढ़ाव भरे रहे रिश्ते

उद्धव ठाकरे के अध्यक्ष बनने के बाद शिवसेना और भाजपा के रिश्ते राज्य में उतार-चढ़ाव भरे रहे। दोनों पार्टियां कई मुद्दों पर अलग-अलग राहें अपनाती हुई दिखाई दीं। 2004 में अटल सरकार के चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सत्ता में आई। 10 साल तक शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर संसद में विपक्षी पार्टी की भूमिका अदा की। राज्य विधानसभा चुनाव भी दोनों दलों ने मिलकर लड़ा था जिसमें भाजपा को 54 जबकि शिवसेना को 62 सीटें मिली थीं।  वहीं 2009 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 46 सीटों से संतोष करना पड़ा था।

 

2014 चुनाव के पहले तोड़ा गठबंधन लेकिन मिलकर बनाई सरकार

2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान सीटों पर समझौता न होने के कारण उद्धव ठाकरे ने भाजपा के साथ गठबंधन को तोड़कर अलग चुनाव लड़ा। हालांकि चुनाव बाद आए परिणाम ने दोनों को एक कर दिया और देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा-शिवसेना की सरकार सत्ता में आई। इस सरकार को भी पूरे पांच साल तक शिवसेना नेतृत्व के तीखे व्यंग्यबाणों का सामना करना पड़ा।

 

2019 के लोकसभा चुनाव में उद्धव ने स्वीकारा पीएम मोदी का नेतृत्व

2018 तक शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे भाजपा के साथ गठबंधन की संभावनाओं से इनकार करते रहे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दोनों दलों के बीच आश्चर्यजनक रूप से गठबंधन हो गया और दोनों पार्टियों ने मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा। इसके बाद शिवसेना के कोटे से अरविंद सावंत के रूप में एक सांसद को केंद्र में मंत्री पद दिया गया। शुरू में शिवसेना ने एक मंत्री पद का विरोध किया लेकिन भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत के आगे उसकी एक न चली।

 

2019 चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक हुई भाजपा-शिवसेना

दोनों पार्टियों ने 2019 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को एक साथ मिलकर लड़ा। हालांकि किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इतनी तीखी बयानबाजी के बावजूद दोनों पार्टियां महाराष्ट्र में चुनाव से पहले गठबंधन करेंगी। इस चुनाव में भाजपा को 105 सीटे जबकि शिवसेना को 56 सीटों पर जीत मिली।

 

मुख्यमंत्री पद पर फंसा पेंच

चुनाव बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना और भाजपा के बीच में तीखी बयानबाजी हुई। भाजपा जहां मुख्यमंत्री पद अपने पास रखना चाहती थी वहीं शिवसेना हर हाल में ढाई साल के लिए अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी। विरोध इतना बढ़ा कि शिवसेना ने अपने एकमात्र मंत्री को मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दिलवा दिया।

विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों के साथ गठबंधन

यहां सियासत ने ऐसा पलटा खाया कि शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन महाराष्ट्र में सत्ता में आ गया है। उद्धव ठाकरे को गठबंधन दल का नेता और सीएम बनाने का फैसला हुआ।अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या भविष्य में इनकी अलग-अलग विचारधारा सरकार चलाने में बाधक बनती है या नहीं।

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