राजस्थान के कोटा में जेके लोन अस्पताल में नवजातों की मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है। बुधवार काे एक और नवजात की मौत हुई। प्रसूति विभाग के ई-वाॅर्ड में भर्ती 4 दिन की बच्ची ने दम ताेड़ दिया। उसकी माैत का कारण तेज ठंड काे माना जा रहा है। गत 30-31 दिसंबर काे इस अस्पताल में 9 नवजातों की माैत हुई। दिसंबर में नवजाताें की माैत का आंकड़ा 100 तक पहुंच गया। 2019 में यहां 963 बच्चों ने दम ताेड़ा। वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने ट्वीट करके राजस्थान सरकार और प्रियंका गांधी का नाम लिए बगैर सवाल उठाए। मायावती ने लिखा- जिन मांओं की गोद उजड़ी, कांग्रेस की महिला महासचिव अब तक उनसे क्यों नहीं मिलीं?

 

शिशु रोग विभाग के एचओडी डॉ. एएल बैरवा ने बताया- 30 दिसंबर को कोटा जिले के खातौली और बारां जिले के 2 नवजातों की मौत हुई। 31 दिसंबर को सांगोद, बारां, बूंदी, कोटा के विज्ञान नगर और चश्मे की बावड़ी निवासी 5 नवजातों की मौत हुई। ये बच्चे लॉ बर्थ वेट, कुछ प्री-मैच्योर डिलीवरी और माइल्ड इन्फेक्शन से पीड़ित थे। इससे पहले, राज्य सरकार की जांच कमेटी ने रिपोर्ट में नवजातों की माैत का कारण अस्पताल के वेंटिलेटर और वार्मर खराब हाेने समेत अन्य कारण बताए थे। सरकार ने इन्हें ठीक करने के आदेश दिए थे।

 

जालीदार खिड़कियों से आती है हवा

डॉक्टर हर मौत पर अपने तर्क दे रहे हैं, लेकिन अब अस्पताल में भर्ती नवजातों के लिए कड़ाके की ठंड जानलेवा साबित हो रही है। बुधवार को प्रसूति विभाग के ई-वाॅर्ड में हुआ। यहां पार्वती पत्नी देवप्रकाश ने 4 दिन पहले ऑपरेशन से स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। 4 दिन तक बच्ची उनके साथ थी। सुबह 9 बजे डॉक्टरों ने राउंड लिया, तब तक बच्ची स्वस्थ थी, लेकिन 11 बजे उसकी माैत हाे गई। बच्ची के दादा महावीर ने बताया कि हम अंदर जाने का प्रयास करते रहे, लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने जाने नहीं दिया। जब तक पहुंचे तो बच्ची सुन्न पड़ी थी। आशंका है कि ठंड से बच्ची की मौत हो गई।

 

रैफर होकर आने वाले बच्चों को बचाना सबसे मुश्कित: डॉक्टर

जेके लोन में शिशु रोग विभाग के एचओडी डॉ. एएल बैरवा ने बताया कि हमारे यहां मरने वाले 70 से 80% बच्चे न्यू बॉर्न होते हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा संख्या उन बच्चों की होती है, जो दूसरी जगह से रैफर होकर आते हैं। कड़ाके की ठंड में नवजातों को दूसरी जगह से यहां लाना खतरनाक है।

 

नवजातों में 3 तरह की समस्याएं देखी जा रहीं: 

हाइपोथर्मिया : यह बच्चे में तापमान की कमी से होती है, जिसे ट्रांसपोर्ट इंक्यूबेटर या कंगारू मदर केयर से मेंटेन किया जा सकता है।
हाइपोग्लाइसीमिया : ग्लूकोज की कमी से होती है। बच्चे को दूध पिलाते हुए लाएं। यदि दूध नहीं है तो 10% ग्लूकोज फीड कराएं।
हाइपोक्सिया : ऑक्सीजन की कमी। ट्रांसपोर्टेशन के दौरान ऑक्सीजन का इंतजाम होना चाहिए, तभी बचाया जा सकता है।
एक्सपर्ट व्यू: 37 डिग्री तापमान के बजाए 4 डिग्री में नवजात
प्रसव के बाद नवजात को जिंदा रखने के लिए 36.5 से 37.5 डिग्री तापमान होना जरूरी है। इससे कम तापमान में हाइपोथर्मिया का खतरा रहता है, जो बच्चों के लिए जानलेवा होता है। फिलहाल कोटा का तापमान 4 डिग्री तक पहुंच चुका है। प्रसव वार्ड में अपनी मां के साथ भर्ती सभी नवजात इसी तापमान में रह रहे हैं। वहां न हीटर है, न वार्मर। ऐसे में नवजात कैसे जिंदा रहेंगे? यह समझ से परे है। विशेषज्ञ मानते हैं कि नवजात जैसे ही मां के गर्भ से बाहर आता है तो उसे तुरंत उसका तापमान मेंटेन करना बुनियादी जरूरत होती है। कारण नवजात 37 डिग्री तापमान वाले मां के गर्भ से सीधे 4 डिग्री तापमान में आता है। इससे उसके दिमाग को नुकसान हो सकता है।

 

https://twitter.com/Mayawati/status/1212570240162377730?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1212570240162377730&ref_url=https%3A%2F%2Fwww.bhaskar.com%2Frajasthan%2Fkota%2Fnews%2Fjklone-hospital-100-child-killed-in-december-rajasthan-news-126411608.html

 

विधायक ने रूम हीटर दिए, मंत्री ने कहा- पुख्ता इंतजाम करें

कोटा से दक्षिण विधायक संदीप शर्मा ने गायत्री परिवार के जनसहयोग से 15 रूम हीटर और 50 कंबल की व्यवस्था कराई। विधायक ने अधीक्षक से कहा- मरीजों को 2-2 कंबल मुहैया करवाएं। बच्चों के वार्डों में रूम हीटर लगवाएं। विधायक ने कहा- हमने अस्पताल प्रबंधन को कहा है कि कोई भी जरूरत होने पर तत्काल हमें बताएं। हम जनसहयोग से इंतजाम कराएंगे। यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने भी अधीक्षक डॉ. एससी दुलारा को निर्देशित किया कि सर्दी से बचाव के लिए अस्पताल में पुख्ता इंतजाम करें।

మరింత సమాచారం తెలుసుకోండి: