फांसी दिए जाने की अबतक आपने जो कहानी सुनी होगी, वह आपको पूरी तरह से फिल्मी लगती होगी। फांसी का फंदा बनने से लेकर फांसी पर लटकाए जाने तक हमारे बीच जो भी जानकारियां हैं, उनमें से कई सही तो कई गलत भी हैं। वहीं दूसरी ओर जल्लाद से लेकर जेलर की भूमिका के बारे में भी हमें अलग-अलग तरह की अफवाहें सुनने को मिलती हैं। कई संस्थान भी इस बारे में पूरी जानकारी नहीं दे पाते हैं। निर्भया के दरिंदों को फांसी की सजा होने के बाद ये अफवाहें और बढ़ी हैं। ऐसी तमाम अफवाहों को दूर करने और इसका सच जानने के लिए हमने उत्तर प्रदेश के पूर्व जेल आईजी और पूर्व डीजीपी रह चुके सुलखान सिंह से बातचीत की। फांसी को लेकर आप भी किसी तरह की गलतफहमी का शिकार न हों और ऐसी-वैसी अफवाहों को सच न मान बैठें।

फांसी देने का सही तरीका

सवाल - क्या है फांसी देने का सही तरीका ? 
सुलखान सिंह-आज एक अखबार में पढ़ा कि निर्भया दुष्कर्म केस के अभियुक्तों की लंबाई के हिसाब से रस्सी की लंबाई रखी गई है और फांसी के दौरान दोषी की गर्दन में झटका न लगे इसके लिए फंदा लगाने के बाद शरीर को धीरे-धीरे गड्ढे में छोड़ा जायेगा। फांसी का यह तरीका गलत है। मुझे याद नहीं पड़ रहा कि क्या फांसी के नियमों में कोई परिवर्तन किया गया है या सुप्रीम कोर्ट ने कोई निर्देश दिए हैं। मृत्यु-दण्ड क्रियान्वित करने के तरीकों पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर चुका है और यह पाया है कि फांसी न्यूनतम तकलीफ और क्रूरता वाला तरीका है। इसमें तत्क्षण मृत्यु हो जाती है।

सवाल - दुनियां से कैसे अलग है भारत में फांसी का तरीका ? 
सुलखान सिंह-गोवा में सत्तर के दशक में एक बार इस पर जांच एवं अध्ययन किया गया था। गोवा पुर्तगाल के अधीन था और पुर्तगाल में फांसी की सजा नहीं थी। इसलिए गोवा में फांसीघर भी नहीं था। आजादी के बाद जब पहली बार फांसी देने की नौबत आई तो इस पर अध्ययन किया गया। कई देशों और भारत के राज्यों के अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि फांसी का भारतीय तरीका सर्वश्रेष्ठ है। इससे दर्द और तकलीफ रहित तत्क्षण मौत होती है।

सवाल - एक शब्द होता है  'झटका' इसका कानूनी तात्पर्य क्या है ? 
सुलखान सिंह- ड्राप का तात्पर्य है कि रस्सी उतनी ढीली, अतिरिक्त रखी जाती है ताकि जब तख्ते हटें तो शरीर अचानक उतना नीचे गिरे। इस झटके से ही  स्पाइनल कॉर्ड टूटती है। शरीर ड्राप होने के बाद आधा घंटा लटका रहना चाहिए। जब डाक्टर प्रमाणित कर दे की जीवन समाप्त हो गया है तब शरीर रस्सी से उतारकर नीचे रखा जाना चाहिए। फांसी के दौरान यह देखना होता है कि व्यक्ति की मृत्यु स्पाइनल कॉर्ड  फ्रैक्चर  से हो न कि दम घुटने से। दम घुटने से मृत्यु बहुत देर बाद और तकलीफ-देह होती है।


 फांसी देने के लिए ऐसा होता है पैमाना

सवाल - सजायाफ्ता व्यक्ति को उसके वजन के अनुसार 'झटका' (drop) दिया जाता है, फांसी देने के लिए क्या होता है पैमाना? 
सुलखान सिंह - उत्तर प्रदेश जेल मैनुअल के पैरा 398 के अनुसार दोषी के वजन के अनुसार रस्सी का drop रखा जायेगा। इसका मानक पैरा 398 में निम्नवत दिया गया है-

 

फांसी देने के लिए ऐसा होता है पैमाना
1. वजन 100 पौंड ( लगभग 46 किलो ) तक - 7 फुट
2. वजन 120 पौंड (लगभग 55 किलो) तक - 6 फुट
3. वजन 140 पौंड (लगभग 64 किलो ) तक - 5 फुट 6 इंच
4. वजन 160 पौंड (लगभग 73 किलो )  तक - 5 फुट

सवाल - क्या फांसी के बाद पहले पोस्टमार्टम जांच नहीं की जाती थी, वर्तमान में क्या प्रावधान है? 
सुलखान सिंह- फांसी  के बाद पहले पोस्टमार्टम जांच नहीं की जाती थी परन्तु अब न्यायिक निर्णय और मानवाधिकार आयोग के निर्देशानुसार अन्त्यपरीक्षण जरूरी है, हालांकि अभी तक उत्तर प्रदेश जेल मैनुअल में संसोधन नहीं किया गया है। 


फांसी: किन बातों का रखा जाता है ख्याल

सवाल - फांसी के बारे में ऐसी कौन सी खास बातें है जिन का ख्याल रखा जाता है? 
कारागार अधीक्षक स्वयं सारी व्यवस्था करेंगे।
अधीक्षक एक दिन पूर्व शाम को रस्सी और फांसी प्लेटफार्म इत्यादि की जांच कर लेंगे।
जिला मजिस्ट्रेट या उप-जिला मजिस्ट्रेट उपस्थित रहेगा।
एक निरीक्षक,उप-निरीक्षक, दो हेड कांस्टेबल और बारह कांस्टेबल की सशस्त्र गार्ड मौजूद रहेगी।
फांसी के समय बन्दी के केवल बालिग पुरुष संबंधी ही मौजूद रह सकते हैं।
फांसी के पूर्ण होने तक जेल के अन्य बन्दी अपनी बैरकों में ही बंद रखे जाते हैं।
बंदी को अधीक्षक तथा जेलर द्वारा पहचान करने के बाद को मृत्यु-दण्ड के आदेश, अपीलीय आदेश तथा दया याचिका खारिज करने के आदेशों को अच्छी तरह समझाया जाता है। फिर जेलर उसे मृत्यु अधिपत्र हिन्दुस्तानी में पढ़कर समझाता है।
जब अधीक्षक और चिकित्साधिकारी फांसी घर में अपनी जगह ले लेते हैं तब बन्दी के दोनों हाथ पीछे करके हथकड़ी लगाई जाती है और जेलर उसे फांसीघर के भीतरी दरवाजे से तख्ते तक ले जाता है।

सवाल - जल्लाद की भूमिका क्या होती है? 
सुलखान सिंह- जल्लाद (executioner) दोषी की दोनो टांगें बांध देता है और जेल अधीक्षक का आदेश मिलने पर लीवर खींच देता है। लीवर खींचने पर वे तख्ते जिन पर दोषी खड़ा होता है दोनों ओर गिर जाते हैं और दोषी रस्सी में छोड़े गयी ढील (drop) के बराबर नीचे झटके से गिरता है परन्तु उसके पैर जमीन तक नहीं पहुंचते ।

सवाल - अगर यह लगे कि मृत शरीर को लेकर प्रदर्शन आदि हो सकते हैं तो ऐसे में क्या किया जाता है ? 
सुलखान सिंह-अगर यह न लगे कि मृत शरीर को लेकर प्रदर्शन आदि हो सकते हैं तो शव को रिश्तेदारों, मित्रों को दे दिया जाता है। यदि जिला मजिस्ट्रेट या प्रभारी मजिस्ट्रेट मित्रों, रिश्तेदारों को देना अवांछनीय समझें तो उसका अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार करा दिया जायेगा। 

सवाल - अंतिम संस्कार के समय अधिकतम कितने लोगो की इजाजत होती है और अगर कोई रिश्तेदार न हो तो उस वक्त क्या किया जाता है? 
सुलखान सिंह-अंतिम संस्कार के समय अधिकतम चार रिश्तेदार, मित्र मौजूद रह सकते हैं। अगर कोई मित्र,रिश्तेदार न हो तो उसी धर्म के कारागार अधिकारी के निर्देश पर क्रियाकर्म किया जायेगा।


 
फांसी की रस्सी को लेकर तमाम तरह की चर्चा होती है,जानिए पूरा सच

अमर उजाला- फांसी की रस्सी को लेकर तमाम तरह की चर्चा होती है, क्या हैं पूरा सच ? 
सुलखान सिंह- रस्सी की जांच के लिये एक बोरे में दो मन बालू भर कर उसे एक तिपाई पर रखा जाता है। तिपाई सहित बोरे के मुंह तक ऊंचाई तख्ते से लगभग 5 फुट होनी चाहिए।
फांसी के लिये एक इंच व्यास की मनीला रस्सी का प्रयोग किया जाता है।
जहाँ फांसी घर हैं वहां कम से कम पांच रस्सियां रखी जाती हैं।
हर तीन महीने बाद और प्रत्येक फाँसी के बाद रस्सी पर बराबर मात्रा में मधुमक्खी का मोम और घी तथा कार्बोलिक एसिड मिलाकर लगाया जाता है और उसे एक घड़े में रखकर मुंह अच्छी तरह बंद करके एक पतली रस्सी से छत से लटकाकर रख दिया जाता है।
जिला मजिस्ट्रेट या उप-जिला मजिस्ट्रेट उपस्थित रहेगा।
सवाल - कैसे पता चलता है कि फांसी सही तरह से दी गई है या नहीं ? 
सुलखान सिंह- मैंने अनुभवी जल्लाद से बात की है। उनके अनुसार अगर सही फांसी लगी तो शरीर शान्त लटका रहता है। यदि गलती हो गई तो श्वासावरोधन होता है और व्यक्ति के पैर देर तक कांपते रहते हैं।

सवाल - क्या फांसी देने से पहले दोषी की अंतिम इच्छा पूछे जाने का कोई नियम है?
सुलखान सिंह - फांसी देने के पहले दोषी की अंतिम इच्छा पूछे जाने का कोई नियम नहीं है।

सवाल - अगर फांसी के समय रस्सी टूट जाये, जो कि असंभव है, तो फांसी की सजा माफ होती हैं ? 
सुलखान सिंह - यदि फांसी के समय रस्सी टूट जाये, जो कि असंभव है, तो फांसी की सजा माफ नहीं होती। उसे पुनः दूसरी रस्सी से फांसी दे दी जायेगी।

सवाल - गंभीर अपराध के लिए फांसी की सजा मिलती है फिर भी लोग इससे नहीं डरते, अपराधों पर लगाम नहीं लगती ?
सुलखान सिंह - सजा अगर तुरंत हो और उसकी न्याय प्रक्रिया जल्दी पूरी हो तो उसका डर भी होगा मगर न्याय में देरी से इसका खौफ अपराधी में नहीं रहता है। 'बिग एंड सर्टेन पनिशमेंट' होनी चाहिए, निर्भया के मामले का इतना लंबा खींचना, देरी से न्याय भी सजा के असर को कम करता है ।

सुलखान सिंह, उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी रहे हैं। 
2008 -2010 तक करीब दो साल आईजी जेल के पद पर रहे हैं।
1980 बैच के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुलखान सिंह बांदा जिले के तिंदवारी क्षेत्र के जौहरपुर गांव के रहने वाले हैं।
उनका जन्म 1957 में हुआ था। इंटर तक की पढ़ाई इन्होंने बांदा से कीऔर इसके बाद वह इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए रुढ़की चले गए थे।
आईआईटी रूड़की से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। 
वर्ष 1980 में सुलखान सिंह भारतीय पुलिस सेवा में चयनित हुए।
वर्तमान में हाईकोर्ट के आधिकारिक वकील बन गए हैं। 

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