बिहार की राजनीति में जो चल रहा है उसे देखकर तो यही समझ आ रहा है कि भले ही जेडीयू व बीजेपी कितना भी इंकार कर ले कि उनके बीच कोई मतभेद नहीं है पर कुछ तो जरूर गड़बड़ है।  


जहां एक तरफ देश में गर्मी का पारा अपनी चरम सीमा को पार कर चुका है वहीं बिहार (Bihar) की राजनीति का टेंपरेचर भी हाई लेवल पर है। माना जा रहा है की 30 मई, प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) कुछ नाराज चल रहे हैं। दरअसल बीजेपी ने कैबिनेट में नीतीश कुमार को एक मंत्री पद का ऑफर दिया तो उन्होने उसे तुरंत ठुकरा दिया।


क्योंकि नीतीश कुमार 2 कैबिनेट और 1 राज्य मंत्री की कुर्सी चाहते थें लेकिन ऐसा न होने पर वो नाराज हो गए। लेकिन इस बात से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) साफ इंकार कर रहे हैं कि उन्हें बीजेपी से किसी भी तरह की नाराजगी है। दूसरी ओर यह भी सच है कि राजनीति के शतरंज में कल जेडीयू यह साफ तौर पर कह दिया कि उनकी पार्टी का आखिरी निर्णय होगा कि वह केंद्र में एनडीए सरकार में शामिल नहीं होगी।


अब जो खबर सामने आई है उससे ये साफ हो गया है कि नीतीश के इस कदम से बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। कल नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए जेडीयू में 8 नए मंत्री शामिल हुए, लेकिन इसमें सभी जेडीयू के नेता हैं बीजेपी के एक भी नेता को जगह नहीं दिया गया। हालांकि ये दोनों पार्टीयां बयान में अपने बीच कोई भी मतभेद होने से इंकार कर रही है पर सच तो यही है कि नीतीश व मोदी (NItish VS Modi)के बीच इस भीषण तापमान के बीच कोल्डवार चल रहा है।


राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो भले ही बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर ली हो लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस फैसले से आने वाले विधानसभा चुनाव 2020 में बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। संभावना यह भी है कि एक बार फिर जेडीयू और बीजेपी अलग हो सकते हैं।


10 साल पुराना है मोदीनीतीश का ‘कोल्डवार’


वैसे देखा जाए तो ये पहली बार नहीं हुआ है जब मोदी और नीतीश के बीच मतभेद उत्पन्न हुआ है बल्कि आज से 10 साल पहले अगर बिहार की राजनीति पर नजर डाले तो साल 2009 में भी नीतीश ने मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार करने से रोका था। नीतीश हमेशा से ही मोदी के कदम से खुश नहीं रहे। इस दौरान चुनाव के अंतिम चरण में नीतिश व मोदी की दोस्ती वाली तस्वीर ने भी बिहार में खूब भूचाल मचाया था जिसकी वजह से नीतीश कुमार नाराज हो गए थे पर बिहार में उस दौरान सरकार साथ में चल रही थी जिसकी वजह से बीजेपी ने इसपर बड़ा एक्शन नहीं लिया।


अंततः 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में बिना मोदी के चुनाव प्रचार के ही एनडीए ने नीतीश के नेतृत्व में दो तिहाई सीटें जीत ली जिसके बाद से नीतीश को ये समझ आ गया कि बिहार उनकी मुट्ठी में है। मोदी की लोकप्रियता को देखते हुए साल 2014 की चुनाव से पहले नीतीश ने 17 साल की दोस्ती को तोड़कर मोदी पर तंज कसना शुरू कर दिया और इसके बाद नीतीश ने लालू से हाथ मिला लिया, नीतीश ने इस तरह पल्टी मारकर ये साबित करना चाहा कि वो मोदी से कम नहीं है।


सवर्ण के साथसाथ दलित और ओबीसी को मिली जगह


अगर आप गौर करें तो नीतीश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल में हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। इन नेताओं के लिस्ट को अगर सामाजिक आधार पर देखें तो इनमें नए सदस्यों में दो सवर्ण, दो दलित, दो अतिपिछड़ा और दो पिछड़ा वर्ग से हैं। कहा जा रहा है कि यह आने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly election) के लिए समीकरण तैयार किया गया है और इसका फायदा कितना होगा ये तो वक्त ही बताएगा। ये है उन 8 नेताओं के नाम जिन्हे मंत्रिमंडल में किया गया है शामिल


विधान पार्षद


डॉ. अशोक चौधरी

संजय झा

नीरज कुमार

विधायक

श्याम रजक फुलवारी शरीफ

नरेन्द्र नारायण यादव आलमनगर

बीमा भारती रुपौली

रामसेवक सिंह हथुआ

लक्षमेश्वर राय लोकहा


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