कचरे में रोजगार खोजने की बात एक जमाने में अटपटी लगती थी पर आज के दौर में कचरा एक इंडस्ट्री के रूप में उभर रहा है। कचरा चुनने वालों को मुख्यधारा में लाकर स्वच्छता और आबो-हवा को शुद्ध करने के साथ ही बिहार के शहरों का कचरा करीब दो लाख लोगों को रोजगार दे सकता है। 



देश के कई राज्यों ने इसकी पहल की है, किंतु बिहार अभी पीछे है। छत्तीसगढ़ का अंबिकापुर मॉडल इन दिनों छाया हुआ है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इसी तर्ज पर बिहार सहित दूसरे राज्यों को भी काम करने की सलाह दी है। स्वच्छता सर्वेक्षण-2019 में पटना सहित राज्य के  सभी शहर पहले से भी खराब स्थिति में पहुंच गए हैं। वहीं एनजीटी ने राज्य में ठोस अपशिष्ट नियमावली-2016 के क्रियान्वयन के लिए तीखे तेवर अपना रखे हैं।



इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव 15 फरवरी को दिल्ली में एनजीटी के समक्ष उपस्थित भी हो चुके हैं। एनजीटी ने कचरा प्रबंधन कर पर्यावरण के लिए आर्दश स्थिति पैदा करने के निर्देश दिए हैं। हाल में लांच हुए स्वच्छता सर्वेक्षण-2020 में भी कचरा प्रबंधन के लिए कचरा बीनने वालों पर फोकस करने पर जोर है। यदि ठीक से अमल हो तो जो कचरा अभी अभिशाप है, वही वरदान बन सकता है।



ये है अंबिकापुर मॉडल : कचरा इंडस्ट्री बिहार के लिए वरदान साबित हो सकती है। अंबिकापुर में करीब 300 महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह है, जो घरों से कूड़ा एकत्रित करता है। फिर उसे अलग-अलग करता है। यह महिलाएं उसे प्रसंस्करण के लिए पिट तक पहुंचाती हैं। वहां दूसरे लोग फिर उसका प्रसंस्करण करते हैं। इस मॉडल को आगे बढ़ाया जा रहा है। राज्य में इसके लिए एक ईको सिस्टम विकसित किया जा सकता है। बोधगया, मुंगेर और मुजफ्फरपुर में कुछ शुरुआत भी हुई किंतु वो आगे नहीं बढ़ सका।



हर वार्ड में 50 से अधिक लोगों को रोजगार
राज्य में 143 निकाय हैं। इनमें वार्डों की संख्या 3370 है। एक वार्ड में कूड़ा उठाने को तीन से चार ठेला चाहिए। हर ठेले पर दो लोगों की जरूरत होगी। फिर कचरे को अलग करने के लिए भी लोग चाहिए। उसके बाद प्रसंस्करण प्लांट में कूड़े से खाद बनाने और मार्केटिंग के लिए अलग टीमों की जरूरत होगी। ऐसे में जानकारों का कहना कि हर वार्ड में 50 से अधिक लोगों को रोजगार मिल सकता है।  बिहार कृषि प्रधान राज्य है तो यहां खाद का बाजार भी उपलब्ध है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत कचरा बीनने वालों को भी मुख्य धारा में लाने के लिए कहा गया है। केंद्र के साथ ही नीति आयोग का राज्यों पर जोर है कि कचरा चुनने वालों की सारे निकायों में भागीदारी सुनिश्चित की जाए। उन्हें प्रशिक्षण, ड्रेस व पैसा दिया जाए तो रोजगार के साथ कचरे की समस्या से भी निजात मिल जाएगी। 

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